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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ एक कृतकार्य मनीषी जो प्रकाश स्तंभ की भांति थे।
प्रो. कांतिकुमार जैन
विद्यापुरम मकरोनिया, सागर जिन मनीषियों ने समकालीन भारत में प्राचीन आर्ष परम्पराओं के संरक्षण एवं संवर्धन में अपना संपूर्ण जीवन खपा दिया है, उनमें साहित्याचार्य पं. दयाचंद जी अन्यतम थे । जैन दर्शन को भारतीय लोकतंत्र के उदात्त मूल्यों के संदर्भ में विश्लेषित एवं व्याख्यायित करने में दयाचंद जी की प्रतिभा अतुलनीय थी। पंडित जी अनेकांतवाद के साक्षात प्रतिरूप थे उन्होंने जीवन के उदात्त मूल्यों को आत्मसात किया था और समाज को नवीन दिशा प्रदान की थी बुंदेलखण्ड की धरती के प्रति तो उनमें असीम अनुराग था ऐसे कृतकार्य मनीषी जो प्रकाश स्तंभ की भांति चतुर्दिक आलोक फैलाते है, किसी एक युग के नहीं होते। वे हमारी चिंरतन थाती है ऐसे उदात्त विचारक, शिक्षा शास्त्री एवं सुधारक को प्रणत विनयांजलि।
वात्सल्य के धनी
ईश्वर चंद जैन
प्रबंधक /इंजीनियर ,बी.एच.ई.एल. भोपाल मुख्यत: मनुष्य जीवन में ही परम सत्य की अथवा सुख - शांति स्वरूप परम धर्म की खोज की जा सकती है, परन्तु सामान्यजन इसकी खोज में ही स्वयं को खो देते है । विरले मनुष्य ही ऐसी खोज में सफल हो पाते हैं। ऐसे ही एक व्यक्तित्व मेरे आदरणीय चाचा स्व. श्री दयाचंद जी साहित्याचार्य जो अपने आप में एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक संस्था थे। वे जीवन पर्यन्त शिक्षक व शिक्षार्थी की भूमिका साथ - साथ निभाते रहे। जीवन के संध्याकाल में भी जिन्होंने जैन साहित्य के रहस्यों को उद्घाटित करते हुए डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ताकि आगामी भवों का प्रातःकाल प्रकाशवान रह सकें । आदरणीय चाचा | ने स्व पर कल्याण की भावना से अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में समर्पित किया।
मैं जब जब सागर आया, आदरणीय चाचा जी से मिलकर उनका आशीर्वाद एवं निस्पृह स्नेह पाकर हृदय से आनंदाभिभूत हो जाता था। उनके आशीर्वाद, शुभकामनाएँ एवं संदेश मुझे हमेशा प्रेरणा स्त्रोत के रूप में प्राप्त होते रहे । उनके सामीप्य के मधुर क्षणों को स्मरण कर मैं उनके प्रति आदर की भावना से ओतप्रोत हो जाता हूँ।
इस स्मृति ग्रंथ के माध्यम से, मैं आदरणीय चाचा जी को अपनी विनयांजलि व आदरांजलि समर्पित करता हूँ तथा कामना करता हूँ कि यह स्मृति ग्रंथ, जीवन की कठिन राहों पर सुख शांति की खोज में निकले पथिक जनों के लिए एक मार्ग दर्शक का महान कार्य करता रहेगा।
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