________________
शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समर्पित जीवन
पं. अमृतलाल जैन शास्त्री
दमोह श्री सम्मानीय स्व. डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य सागर अलौकिक मनीषी विद्वान थे जैसा उनका नाम था वैसा दया का काम था । अपने शिष्यों पर करूणा का भाव रखते थे ये छात्र भविष्य में उन्नतिशील बने, उनके अध्ययन के लिए व्यवस्थारूप साधन भी उपलब्ध करा देते थे। अध्ययन कराते समय विषय का बहुत अच्छा प्रतिपादन करते थे शिष्य भी प्रसन्नतापूर्वक अध्ययन करते थे ऐसे अनेक शिष्यगण है जो आज भी ऊँचे - ऊँचे पदों पर कार्यरत हैं। माधुरी भाषा में धीमी धीमी आवाज से प्रवचन करते थे जिनसे समस्त श्रावक मुग्ध हो जाते थे, इससे जनजन के प्रिय थे। स्थानीय सागर समाज एवं पदाधिकारीगण सदस्यगण नवयुवक महिला समाज सभी को प्रिय थे।
प्राचार्य पद पर कार्यरत होने पर भी घमण्ड नहीं था अपनी प्रखर लेखनी से डॉ. पद को सुशोभित किया हमारा संबंध उनसे बहुत रहा कारण मैंने मोराजी में 10 वर्ष तक अध्ययन उनके ज्येष्ठ भ्राता एवं श्रीमान् पूज्य पं. माणिकचंद जी से किया था। मैं 12 वर्ष शाहपुर विद्यालय में कार्यरत रहा, उनकी सेवा करने का भी शुभ अवसर मिलता रहा हमारे प्रति उनका बड़ा स्नेह था अत: उनके प्रति मै अपनी विनयांजली सादर समर्पित करता हूँ।
सागर का अनमोल रत्न
सुरेन्द्र सिंह नेगी
डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर मुझे यह जानकर सुखद अनुभव हो रहा है कि डॉ. दयाचंद साहित्याचार्य की स्मृति में एक स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है। डॉ. दयाचंद जी विनम्र, मिष्ठभाषी व तपोनिष्ठ शिक्षक के अतिरिक्त जैन दर्शन के मर्मज्ञ चिंतक रहे हैं । ज्ञानदान का उनका सारस्वत अभियान सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी उनके जीवन के अंतिम काल तक चलता रहा । उन्होंने जो कुछ भी अर्जित किया उसका गत्यात्मक स्वरूप अपने वैशिष्ट्य बोध के कारण सदैव प्रेरणास्पद बना रहेगा।
विभिन्न विद्वानों के गहन वैचारिक मन्थन से उद्भूत यह स्मृति ग्रंथ उनके जीवन के कई अनछुए पहलूओं को उजागर करते हुए युग सापेक्ष मानवोत्कर्षक मूल्यों को उद्घाटित करेगा । इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को मेरा विनत प्रणाम।
(38
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org