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शुभाशीष/ श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विनयांजलि
सिंघई बालकचन्द्र जैन
बड़ा बाजार, सागर (म.प्र.) मुझे यह जानकर आत्मीय प्रसन्नता है कि पुरानी पीढी के राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिनाम सरस्वती के वरदपुत्र स्व. डॉ. पं. दयाचन्द्र जी साहित्याचार्य प्राचार्य श्री गणेश दिगम्बर संस्कृत महाविद्यालय (मोराजी) सागर का ‘स्मृतिग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह समाज के लिए गौरव की बात है। मैं अपनी हार्दिक विनयांजली सम्प्रेषित करता हूँ।
दयाचंद दया के धनी
शान्तिलाल जैन,बैनाड़ा
हरी पर्वत आगरा (उ.प्र.) बड़े ही हर्ष का विषय है कि आप स्व. आदरणीय श्रीमान् पं. दयाचंद जी जैन साहित्याचार्य का स्मृति ग्रंथ प्रकाशन करने जा रहे है । पंडित जी आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व दशलक्षण पर्व पर प्रवचन हेतु आगरा नाई की मंडी में निमंत्रण पर आये थे और अपने ही निवास पर ठहरने की व्यवस्था की गई थी इसलिए काफी समय धार्मिक वार्तालाप में आनंदपूर्वक समाप्त होता था, आप बहुत ही सरल परिणामी निर्लोभी शांत रहकर कम बोलते हुए बहुत ही मधुर वाणी से हर चर्चा को समझाने में निपुण थे।
आपने अपने जीवन का अधिक समय पठन पाठन में ही गुजारा था और इस शताब्दी की दो महान विभूति पूज्य क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी एवं महान विद्वान श्रीमान् पन्नालाल जी साहित्याचार्य के साथ कदम से कदम मिलाकर उनके साथ व्यतीत किया था । पंडित जी साहिब की गिनती जैन समाज के अनमोल रत्नों में की जाती है अत: उपरोक्त तीनों महानुभाव आज मौजूद नहीं है लेकिन इतिहास इनके गुणगानों को कभी भी भूल नहीं सकता है।
पंडित जी की धर्म पत्नी के देहावसान के बाद इनकी एक सुपुत्री ने जीवन भर अविवाहित रहकर पूरा जीवन इनकी सेवा सुश्रुषा में बिताया, यह भी एक अनौखी आश्चर्यजनक घटना है। आज इनके गुणों का वर्णन लेखनी द्वारा नहीं किया जा सकता है वह स्वयं एक ज्ञान की मूर्ति थे उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दूसरों को शिक्षा देने में लगाया । आज वे अमर हो गये, मैं तो एक अल्प ज्ञानी हूँ उनके बारे में जितना भी लिखा जाये थोड़ा है, वह इस शताब्दी के बहुत ही संतोषी, गंभीर, निर्लोभी महानपुरुष थे आज ऐसे व्यक्तियों का समाज में अभाव नजर ही आ रहा है। वह ज्ञान के एक महान शक्तिवान पुंज थे उनको निकट से देखकर साथ में रहकर जो कुछ भी देखने को मिला उनको शब्दों द्वारा व्यक्त करना असंभव है उनके जीवन की गौरवगाथा लिखना कोई आसान नहीं है ।
अंत में भगवान महावीर स्वामी से नत मस्तक होकर इच्छा करता हूँ कि वह आज जिस पर्याय में भी हो सुखी रहे और भविष्य में कर्मो की बेड़ियों को काटकर सदगति को प्राप्त करते रहें।
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