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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ नहीं। इसलिए यात्रा के विषय में संशोधन करने हेतु आहारोपरांत पुन: दूरभाष पर सम्पर्क किया ।तब मुझे बताया गया कि नहीं, पं. जी आज ही जाने के लिए कह रहे हैं। मुझे एकाधिक बार पं. जी के ही निमित्तवश अष्टमी या चर्तुदशी के दिन यात्रा करनी पड़ी थी। इसी पशोपेश की स्थिति में आज भी तैयार हो गया। साथ में ब्र. चक्रेश जी को लिया और लगभग 2 बजे हम गुरुकुल से रवाना हो गये - दमोह पहुँचकर सागर से आ रहे वाहन द्वारा ही साथ में कुण्डलपुर पहुंचने का निर्देश प्राप्त हुआ था। किन्तु जैसे ही हम दमोह पहुँचे, तब भी पं. जी वहाँ नहीं पहुंचे थे। मैने सागर सम्पर्क किया। तब ज्ञात हुआ कि कुछ विलम्ब से निकल सके हैं। अत: मैने ब्र. चक्रेश जी को उनके साथ आने को छोड़ स्वयं बस से ही कुण्डलपुर पहले जाने का निर्णय लिया। जिससे कि वहाँ आवश्यक व्यवस्था कर सकूँ । मेरे पहले से पहुँचने पर मात्र इतना हुआ कि एक टीनसेड मिल सका।
रात्रि 11.15 बजे के करीब पं. जी का वाहन कुण्डलपुर आया । पं. जी के साथ पुत्र अशोक, डॉ. राजेश एवं पौत्र आकाश थे। शिष्टाचार पालन के बाद चाहा सीधा विश्राम हेतु निश्चित स्थान पर पहुंचा दिया जाये । कारण, पं. जी 10.00 बजे तक विश्राम करने के अभ्यस्त हैं और आज समय का अतिक्रम अधिक हो गया है, साथ ही यात्रा का श्रम भी है। जब तक उनको व्यवस्थित किया । 12.00 बज गये । इस दौरान सुबह का कार्यक्रम भी तय हुआ साथ में अन्य वार्ताएँ भी । आचार्य भक्ति के समय ही आचार्यश्री का दर्शनलाभ किया जाये, अभी विलम्ब होने से उन्हें बाधित किया जाना उचित नहीं। साथ ही यह भी निर्णय लिया कि चूँकि आज की रात्रि टीनसेड में ही रहना है, अत: यहाँ घण्टी (जो कि पं. जी किसी भी प्रकार की आवश्यकता होने पर प्रयोग करते थे) का उपयोग संभव नहीं है, इसलिए दो-दो घण्टे जागकर बिताया जाये। उनकी जाप्य,पाठ की पुस्तकें व घड़ी आदि उनको दिखाकर कि आपके माँगने पर आपको मिल जायेगी, तथा यहाँ रखी है, बता दिया गया। पं. जी ने क्षेत्र एवं आचार्यश्री की भाववंदना की और णमोकार महामंत्र द्वारा कायोत्सर्ग कर विश्राम आरंभ किया।
जब पं. जी दमोह से कुण्डलपुर के लिए रवाना हुये थे तो बहुत पहले आने का वृतान्त सुनाते आ रहे थे कि हम कैसे बैलगाड़ी से आया करते थे। तदनन्तर कैसेट से आचार्यश्री के प्रवचन सुन रहे थे विलम्ब हो जाने तथा यात्राश्रम होने के कारण उनके स्वर में किञ्चित् विकृति थी। ऐसी स्वर विकृति को सुनने का मुझे अभ्यास हो गया था। वे जब कभी श्लथ होते तब ऐसा होता था। अत: मैंने उसी अनुभव के आधार पर उनके विश्राम की जल्दी व्यवस्था की। जबकि वे सोने से पूर्व लगभग 12:30 बजे तक चर्चा करते रहे। उसमें कुछ वाक्य तो हमारी समझ में नहीं आ पाये है । अधिकांश को समझकर वार्तालाप गति पाता रहा।
अशोक जी व ब्र. चक्रेश जी को प्रथम ही विश्राम हेतु बोल दिया। मैं तथा डॉ. राजेश जी बाद में विश्राम करेंगे । इस तरह करीब 12:30 पर जब पं. जी तथा ये दोनों विश्रामरत हो गये तब शयन हेतु आवश्यक वस्त्रादि लेने कमरे तक जाने को उद्यत हुआ। साथ में भाई ब्र. राजेश जी 'वर्धमान' थे । चलते समय इच्छा हुई चलो ज्ञान साधना केन्द्र (जहाँ आचार्यश्री एवं उनका संघ विश्राम कर रहे हैं) देखकर आये। हम दोनों साथ-साथ गये ।10:15 मिनिट सभी तरफ देखा । हल्की ठण्डी के साथ सभी तरफ सन्नाटा था।
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