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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ___ एकदा, जब हम पं. जी के साथ ही आचार्य विद्यासागर जी के दर्शनार्थ नेमावर गये हुये थे। वहाँ तीन दिन रुकना हुआ। कई सत्रों में आचार्य श्री से चर्चाएँ हुई। उस समय आचार्यश्री ने पं. जी के लिए दो समय आहार लेते हुये मात्र तली हुई वस्तुओं के त्याग का परामर्श दिया और उसका अनुपालन जितनी कठोरता से किया उसका एक उदाहरण ही पर्याप्त है कि पारिवारिक आग्रहों के बावजूद भी उसका पालन किया।
अमरकण्टक प्रवास के दौरान आचार्यश्री से निर्देश मिला था कि अब हो सके तो सायंकालीन अन्नाहार बंदकर दिया जावे । यही परामर्श आर्यिका श्री सुपार्श्वमति जी द्वारा भी मिला और तुरंत ही सायंकालीन आहार बंद हो गया। पं. जी का आहार-पान संयमित तो पूर्व से ही था। इसलिए किसी प्रकार का नियम-व्रत देते समय साधुओं को भी पूर्ण विचार करना पड़ता था। उस पर भी शारीरिक स्थिति एवं अध्ययन-अध्यापन से सतत् होने वाले मानसिक परिश्रम के परिपेक्ष्य की भूमिका का भी विचार करना होता था।
भाग्योदय तीर्थ, सागर में भी आचार्यश्री एवं संघस्थ अन्य साधुजनों से विमर्श हुआ। चूँकि यहाँ पंचकल्याण महोत्सव के संदर्भ में काफी समय रुकने का अवसर मिला था। करेली पंचकल्याणक के अल्प प्रवास में भी आचार्य श्री का निर्देश था कि अब काय के साथ रहने वाले ममत्व को दूर करते हुये कषाय के तनुकरण का विचार भी करना चाहिए। उस समय आचार्यश्री ने कहा था कि अब हो सके तो आवागमन की मर्यादा भी निश्चित करें। शीघ्रता से सागर और जबलपुर आने-जाने का विकल्प छोड़ना चाहिए। साथ ही पारिवारिक उत्सवों में शामिल होने की अवस्था से बचना चाहिए। पं. जी संयुक्त परिवार के प्रमुख सदस्य थे। इसलिए पारिवारिक जिम्मेदारियाँ स्वयमेव उन पर रहती थी। परिवार में सर्वाधिक सम्मानीय अवस्था को प्राप्त होने के कारण कुछ अतिरिक्त रूप से इन कार्यो में सहभागिता होती थी। किन्तु आचार्यश्री के इस निर्देश ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया।
आचार्यश्री की अपेक्षा थी कि साधना का क्रम एक बार के अन्नाहार तक ही सीमित हो जाये । किन्तु सायंकाल में पेय के अतिरिक्त सभी के त्याग की सीमा तक पं. जी ने सज्योषित साधना पूर्ण की। और जब तक अंत की साधना तक पहुँच पाने का अवसर आ पाता तब तक आयु के अंतिम निषेक ने गिनती गिन
ली।
कुण्डलपुर में 2001 में आयोजित महोत्सव में बनारस प्रवास से मैं भी कुण्डलपुर आया था। एक तो स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से तथा नैतिक विषयों पर चर्चा करने हेतु महोत्सव के दौरान ही मैं सागर आ गया । तब पं. जी के दर्शन लाभ व वार्ता का अवसर मिल सका । महोत्सव के बाद में चाहता था कि शीघ्र ही बनारस लौट जाऊँ किन्तु स्वास्थ्य की अनुकूलता न हो पाने के कारण जाना विलम्बित होता रहा। 8 मार्च को मैं जबलपुर गुरुकुल में ही था। अचानक से आज फाल्गुन सुदी चर्तुदशी के दिन दूरभाष से समाचार मिला कि पं. जी कुण्डलपुर जाना चाहते हैं आपको भी बुलाया है। आहारपूर्व यह समाचार मिल गया था। मैं चाहता था कि चूंकि आज चतुर्दशी है, अत: आज न चलकर यदि कल चला जाये तो मुझे कोई आपत्ति
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