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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ (2) इन्द्रिय विषयों की पूर्ण सामग्री मिलने पर भी इन्द्रिय विषयों के सेवन की इच्छा जागृत न होना मध्यम
अपहृत संयम है। (3) सद्गुरु के उपदेश से इन्द्रिय विषयों से वैराग्य होना, जघन्य अपहृत संयम है। कहा है - "काय छहों प्रतिपाल,' पंचेन्द्रिय मन वश करो।
संयम रतन संभाल, विषय चोर बहु फिरत हैं। संयम के और भी दो भेद है :- (1) निश्चय संयम (2) व्यवहार संयम ।
निजआत्मा पर दयाकर विषय कषायों से एवं विभाव भावों से दूर रहकर आत्मपरिणामों को विशुद्ध रखना निश्चय संयम कहलाता है। पर प्राणियों पर दया के भाव रखना व्यवहार संयम है।
___ अभी तक श्रमणों द्वारा पालन किये जाने वाले संयम धर्म का ही उल्लेख किया गया है। श्रावकों के विषय में पंडित प्रवर आशाधर जी सागार धर्मामृत में इस कारिका के माध्यम से साधक के गुणों का वर्णन करते है :
न्यायोपात्तधनो यजन् गुणगुरुन् , सदगी स्त्रिवर्ग भज - न्नन्योन्यानुगुणं तहर्दगृहिणी, स्थानालयो हीमयः। युवताहार विहार आर्य समिति:, प्राज्ञः कृतज्ञो वशी।
श्रृष्वन् धर्मविधि दयालु रधमी: , सागार धर्म चरेत् ॥गा.11 आदर्श गृहस्थ न्यायपूर्वक धन कमाता है, गुणी पुरुषों एवं गुणों का सम्मान करता है, वह प्रशस्त और सत्यवाणी बोलता है, धर्म, अर्थ तथा काम पुरुषार्थ का परस्पर अविरोध रूप से सेवन करता है। इन पुरुषार्थों के योग्य स्त्री, स्थान, भवनादि को धारण करता है, वह लज्जाशील अनुकूल विहार आहार करने वाला, सदाचार को अपनी जीवन निधि मानने वाले, सत्पुरुषों की संगति करता है, हिताहित के विचार करने में वह तत्पर रहता है, वह कृतज्ञ और जितेन्द्रिय होता है, धर्म की विधि को सदा सुनता है, दया से द्रवित अन्तःकरण होता है, पाप से डरता है इस प्रकार इन चौदह विशेषताओं से सम्पन्न व्यक्ति आदर्श गृहस्थ या सद्गृहस्थ कहलाता है।
___ कोई व्यक्ति यह सोच सकते हैं कि जीवन एक संग्राम और संघर्ष की स्थिति में है, उसमें न्याय अन्याय की मीमांसा करने वालों में आगे बढ़ना चाहिए।
यह मार्ग के लिए आदर्श नहीं है। यह अपने आचार और व्यवहार द्वारा इस प्रकार के जगत का निर्माण करना चाहता है, जहाँ ईर्ष्या, द्वेष, मोह, दंभ आदि दुष्ट प्रवृत्तियों का प्रसार न हो । सब प्रेम और शान्ति के साथ जीवन ज्योति को विकसित करते हुए निर्वाण की साधना में उद्यत रहें। यह उसकी हार्दिक कामना रहती है। तिर्यचों को भी संयम साधना में तत्पर देख बुधजन जी मनुष्यों को संयम के लिए उत्साहित करते हुये कहते हैं -
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