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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ | सम्मेदशिखर माहात्म्य में चौबीस तीर्थंकरों के तीर्थकाल में इसतीर्थराज की यात्रा करने वाले यात्रियों के आख्यान दिये हैं जिन्होंने लौकिक फल प्राप्त कर तपस्या के द्वारा निर्वाण पद प्राप्त किया है । दिगम्बर आगमों के समान श्वेताम्बर आगमों में भी इस क्षेत्र की महत्ता स्वीकार की गई है' इससे सिद्ध है कि सम्मेदशिखर अति पवित्र एवं अति प्राचीन तीर्थ है। पुरावशेष आज भी उपलब्ध हैं ।
मुगलकाल में विविध स्थानों पर होने वाले उपद्रवों के कारण इस पर्वत पर तीर्थ यात्रियों का आना जाना बंद हो गया था परन्तु औरंगजेब के शासन काल के बाद क्षेत्र पर कुछ प्रकाश आया और यात्रियों का आवागमन बढ़ गया " अठारवीं शती में अंग्रेज यात्रियों ने भी इस क्षेत्र की यात्रा कर यहाँ के प्राकृतिक भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किये हैं जिनमें तत्कालीन स्थिति का स्पष्ट चित्रण प्राप्त है ।"
पर्वत की चढ़ाई उतराई का क्षेत्र 27 कि.मी. है परिक्रमा 42 कि.मी. है कि.मी. पर गन्धर्व नाला और उससे आगे सीतानाला है ।
स्थिति : आज इस क्षेत्र में दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन धर्मशालाएँ है। मंदिर एवं अन्य सांस्कृतिक स्थल हैं पहाड़ पर 25 छोटे शिखर हैं जिसमें निर्वाण प्राप्त 20 तीर्थंकरों, गौतम गणधर एवं तीर्थकरों की चरण पादुकाएँ हैं । भाव सहित इस तीर्थ की वंदना करने पर जीव को 49 भव में निश्चित ही मोक्ष प्राप्त होता है । नरक और तिर्यच गति का बंध नहीं होता है।
मधुवन से चढ़ते हुए 3
हमारे पूर्व आचार्यों ने इस क्षेत्र की अनंत महिमा गायी है । यह क्षेत्र पूर्व से ही अत्यंत पवित्र था, है और रहेगा । जैनियों की आपसी फूट के कारण क्षेत्र की पर्वतीय व्यवस्था में अनेक परिवर्तन कर
की प्राचीनता को मिटाने का प्रयास चल रहा है । जो अत्यंत शोचनीय है । मतभेद होना कोई बुरी बात नहीं है पर मनभेद कर अपनी पवित्र भूमि को अपवित्र बनवाना एक अक्षम्य अपराध है । आगे आने वाली हमारी शिक्षित पीढ़ी हमें गालियाँ देगी, क्षमा नहीं करेगी ।
जैनियों ने धन कमा कर अपने जीवन को सभी प्रकार की सुख सुविधाओं का गुलाम बना लिया है । हमारी सुविधा भोगी प्रवृत्ति के कारण, आलस्य एवं सामाजिक अनुशासन हीनता के कारण क्षेत्र के पर्वत पर जगह जगह खाने पीने की लघु दुकानें खुल गई है। दुकानदार पर्वत पर रहने लगे हैं। धीरे-धीरे कान बना लेंगे और अन्य प्रकार से क्षेत्र की भूमि हथियाने का प्रयास सक्रिय हो जावेगा ।
मुझे ध्यान है 15 वर्ष पूर्व कोई भी यात्री पर्वत पर जूता-चप्पल पहनकर नहीं चढ़ता था । न पर्वत पर खाने पीने की दुकानें थी । यात्रा से लौटने पर गंधर्व नाला पर क्षेत्र कमेटी की ओर यात्रियों को स्वल्पाहार की व्यवस्था दी जाती थी । यात्री भी पवित्र भावना से वंदना के लिए पर्वत पर पवित्र वस्त्र पहनकर चढ़ता था । मनसा, वाचा, कर्मणा पवित्र होता था, पर आज तो हमारे क्षेत्र पिकनिक स्पॉट, भ्रमण क्षेत्र बन रहे हैं। इसके लिए हमारे श्वेताम्बर एवं दिगम्बर भाई मिलकर विचार करें जूता चप्पल पहनकर वंदना करने की प्रवृत्ति बंद करें। सम्मेदशिखर की पवित्रता बनाये रखने का उपक्रम प्रारंभ करें। क्षेत्र की
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