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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ था । वंदना के लिए यात्रा प्रारंभ करते ही प्राकृतिक सौन्दर्य हृदय को आनंद से भर देता है। लगभग एक हजार फुट ऊँचा जाने पर इसकी प्रमुख आठचोटियों के बीच पार्श्वनाथ की चोटी बादलों के बीच अतिशय शोभाकारी दिखाई देती है। जैन आचार्यों के अलावा अनेक अंग्रेज यात्रियों ने इनकी सुन्दरता का वर्णन किया है।
सम्मेद का अर्थ :
इस पर्वत की सबसे ऊँची चोटी सम्मेद शिखर कहलाती है। यह शब्द सम्मद + शिखर का रूपांतर प्रतीत होता है। इसकी निष्पत्ति सम् + मद् घञर्थ में क प्रत्यय अथवा अच् प्रत्यय करने पर इसका अर्थ हर्ष, हर्षयुक्त होगा । इसकी सबसे ऊँची चोटी को मंगल शिखर (The peak of the bliss) कहा जाता है। हमारे आगम ग्रन्थों में जैसे आचार्य यतिवृषभ द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ती एवं गुणभद्र के उत्तर पुराण में इस स्थान को अनन्तानंत मुनियों की तपोस्थली एवं निर्वाण स्थली के रूप में निरूपित किया है। आधुनिक युग के कुछ विचारकों का अनुमान है, कि जैन श्रमण इस पर्वत पर तपस्या किया करते थे इसलिए इस पर्वत की ऊँची चोटी का नाम समणशिखर, श्रमण शिखर से सम्मेद शिखर हो गया है। इस पर्वतराज से वर्तमान तीर्थकरो में से ऋषभनाथ, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीर (बर्द्धमान) को छोड़कर शेष 20 तीर्थकरों एवं उनके समवशरण में विराजमान हजारों मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है।
यथा : अजितनाथ जिनेन्द्र ने चैत्रशुक्ला पंचमी के पूर्वान्ह में भरणी नक्षत्र में सम्मेदशिखर से एक हजार मुनियों के साथ मुक्ति प्राप्त की -
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सम्भवनाथ, अभिनंदन नाथ, सुमतिनाथ, ने एक एक हजार मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया। पद्मप्रभदेव ने 324 मुनियों के साथ, सुपार्श्वनाथ, ने 500 मुनियों के साथ, चन्द्रप्रभु, पुष्पदंत, शीतल नाथ, श्रेयांसनाथ ने एक - एक हजार मुनियों के साथ, विमलनाथ, ने 600 मुनियों के साथ, अनंतनाथ ने सात हजार मुनियों के साथ, धर्मनाथ ने आठ सौ एक, शांतिनाथ ने नौ सौ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ ने एक हजार मुनियों के साथ मल्लिनाथ ने 500 मुनियों के साथ, मुनिसुव्रत नाथ, नमिनाथ ने एक हजार मुनियों के साथ तथा पार्श्वनाथ ने 36 मुनियों के साथ सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया है।
श्री वर्धमान कवि ने अपनी दशभक्यादि महाशास्त्र में ' पार्श्वनाथ पर्वत का वर्णन किया है - और इसे रामचंद्र जी का निर्वाण स्थान बताया है ।
जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से अंधकार को नष्टकर देता है उसी प्रकार इस क्षेत्र की अर्चना करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है । कवि ने इस पर्वतराज को केवलियों की निर्वाण भूमि बताया है । पं. आशाधर जी ने - "त्रिषष्ठि स्मृति शास्त्र" में " रामचंद्रजी और हनुमानजी का मुक्ति स्थान भी इस सम्मेद शिखर को माना है ।
श्री रविषेणाचार्य ने अपने पद्म पुराण में ' हनुमान का निर्वाण स्थान सम्मेदशिखर को लिखा है श्री गुणभद्राचार्य ने उत्तर पुराण में सुग्रीव, हनुमान, रामचंद्र आदि को इस पर्वत से मुक्त हुआ माना है
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