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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ में निर्वाण नहीं होगा। जो चारित्र से भ्रष्ट है किन्तु सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट नहीं है उसका कुछ काल में निर्वाण होगा। उसके सुविशुद्ध तीव्र लेश्या होने से वह अल्प संसारी होता है । सम्यक्त्व की उत्कृष्ट आराधना केवली के होती है, जघन्य आराधना संक्लेश परिणाम वाले अविरत सम्यग्दृष्टि के होती है। मध्यम आराधना शेष सम्यग्दृष्टियों के होती है। इस तरह अविरत सम्यग्दृष्टि के अनंतानंत संसार नहीं होता है। निष्कर्ष :
ज्ञानी यदि तप पूर्वक मरण करता है तब वह शरीर को कृश करते हुए संसार को भी कृश करता है और अज्ञानी तप पूर्वक मरण करता है तब वह केवल शरीर को ही कृश करता है। परन्तु अज्ञानी भी तप, संयम, स्वाध्याय आदि पूर्वक यथाक्रम से कर्मों के उदय को समाप्त कर क्षयोपशमिक स्थिति में पहुंचकर मोक्षमार्ग में प्रवृत्त हो सकता है। ऐसा न होने पर अणुव्रत, महाव्रत, तप आदि का पालन करता हुआ भी उसकी प्रवृत्ति सांसारिक अभ्युदय की प्राप्ति के लिए ही होती है । परिणामों की विशुद्धि छोड़कर ज्ञानी या अज्ञानी उत्कृष्ट भी तप करे तब भी उनके अशुभ कर्म के कारण आस्रव से रहित शुद्धि नहीं होती। तत्त्वार्थ श्रद्धान से रहित मिथ्या दृष्टि दृढ चारित्र वाला हो या अदृढ़ चारित्र वाला, मरण समय वह ज्ञान और चारित्र का आराधक नहीं होता। कदाचित् वह चारित्र और उग्र तप भी करे, तब भी मोक्ष को प्राप्त नहीं करता। केवल तप मुक्ति का उपाय नहीं है। अज्ञानी का तप आंशिक विशुद्धि एवं आंशिक कर्मों की निर्जरा का कारण होता है । जो चारित्र से भ्रष्ट हो किन्तु सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट नहीं हो, उसका कुछ काल में निर्वाण होता, परन्तु जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट है, उसका अनंतानंत काल में निर्वाण नहीं होता । सम्यग्दृष्टियों के ज्ञानदर्शन की तरह मिथ्यादृष्टियों के ज्ञानदर्शन में भी आंशिक पाप का क्षय होना पाया जाता है। उत्कृष्ट तप वह है जो अभ्यन्तर सल्लेखना पूर्वक बाह्य सल्लेखना करते हुए संसार त्याग कर दृढ़ निश्चय करता है। उत्कृष्ट तप ज्ञानी के होता है। कषायों का पूर्ण दमन न होने के कारण अज्ञानी के बाह्य सल्लेखना ही होती है। यथार्थ मरण के लिए अन्य आराधनाओं के साथ तपाराधना भी आवश्यक है। वस्तुत: ज्ञानी या अज्ञानी के द्वारा किया गया सम्यक् तप पूर्णत: निरर्थक नहीं है, परन्तु दोनों के कर्मों की निर्जरा में महान अंतर होता है। मोक्ष के लिए कर्मों की पूर्ण निर्जरा एवं मोक्ष मार्ग में प्रवेश के लिए सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप चतुरंग का पूर्ण होना आवश्यक है। आधार ग्रन्थ अध्यात्म अमृतकलश
अमृतचन्द्राचार्य, टीकाकार, पं. जगन्मोहनलाल सिद्धांतशास्त्री, सम्पा. पं. कैलाशचंद्र सिद्धांतशास्त्री प्रकाशक, श्री चन्द्रप्रभ दि जैन मंदिर,कटनी म.प्र.
चतुर्थ संस्करण, सन् 2003 जैन दर्शन
पं. महेन्द्रकुमार जैन, गणेश वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी सन् 1974
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