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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ली है। मूल में गिरिनार भगवान् नेमि के निमित्त से पावन तीर्थ बना ।यह सत्य जैनेतर पुराण से भी सिद्ध है।
आगे वे लिखते है कि - जूनागढ़ के निकट पाँच गगनचुम्बी शिखर हैं, जिन्हें जैनेतर लोग अम्बा माता, गोरखनाथ, औघड़ शिखर, गुरु दत्तात्रेय और काल्का (जहाँ अघोरी रहते है ) कहते हैं। जैनों के लिए ये पाँचों टोंकें पूज्य और पवित्र हैं। इन पर उनके (जैनों के) मंदिर अथवा चरण बने हुए है, जिनकी वे पूजा और वंदना करते हैं । इस पर्वत पर समासवंश के राजाओं के किले और महलों के खण्डहर भी है।
__ मंदिरों के अतिरिक्त गिरिनार पर तीन कुण्ड भी प्रसिद्ध है, जो गोमुख, हनुमान धारा और कमण्डल कुण्ड कहलाते हैं । भैरव जप नामक पाषाण एक दर्शनीय वस्तु है। पहले उस पर से कूदकर पाखण्डी लोग स्वर्ग पाने के लोभ में अपने प्राण दिया करते थे। हो सकता है यह वह स्थान हो जहाँ से अम्बिका का जीव अपने पूर्व भव में भागते हुए गिरकर स्वर्गवासी हुआ था । रेवती कुण्ड के ऊपर ही रेवताचल पर्वत है, जिसकी तलहटी में अशोक के धर्मलेख है।
हिन्दूशास्त्रों में गिरिनार शब्द का उल्लेख प्राय: देखने को नहीं मिलता है और न ही उसका महत्व प्रतिपादित किया गया है। डॉ. कामताप्रसाद जैन ने अनेक हिन्दू - शास्त्रों का विशेष अध्ययन - मनन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला है कि - हिन्दुओं के लिए वस्त्रापथ, रैवत और ऊर्जयन्त - ये तीन अलग - अलग स्थान थे और ऊर्जयन्त का महत्व उनके लिए नहीं था। वर्तमान की चौथी - पाँचवीं टोकों को सम्भवत: वे ऊर्जयन्त कहते थे, जिसके पश्चिम में रैवत मानते थे। गिरिनगर (गिरिनार) का उल्लेख उनके (हिन्दुओं के) शास्त्रों में प्राय: नहीं मिलता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ऊर्जयन्त अर्थात् गिरिनार पर्वत की महत्ता जैनों के लिए अत्यंत प्राचीन काल से है। एक पौराणिक उल्लेख के अनुसार तो भरत चक्रवर्ती ने भावी तीर्थ की कल्पना से भी इस गिरिनार पर्वत की यात्रा की थी।आदिपुराण में आचार्य जिनसेन लिखते है कि - सैकड़ों ऊँट और घोड़ियों की भेंट लेकर आये हुए सोरठ देश के राजाओं से सेवा कराते हुए अथवा उनसे प्रीतिपूर्वक साक्षात्कार (मुलाकात) करते हुए चक्रवर्ती भरत गिरिनार पर्वत के मनोहर प्रदेशों में जा पहुँचे भविष्यत् काल में होने वाले तीर्थङ्कर नेमिनाथ का स्मरण करते हुए चक्रवर्ती सोरठ देश में सुमेरु पर्वत के समान ऊँचे गिरिनार पर्वत की प्रदक्षिणा कर आगे बढ़े।
__जैनेतर बंधुओं ने भी परवर्ती काल के समान रूप से ऊर्जयन्त अर्थात् गिरिनार पर्वत के महत्व को स्वीकार किया है, किन्तु खेद है कि वर्तमान गुजरात सरकार हिन्दुओं को नियम विरुद्ध तरीकों से उकसाकर सीधे, सरल तथा अहिंसा के पुजारी जैन बंधुओं को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है, जो निश्चय ही मानवता के सिद्धांतों के विपरीत है।
केन्द्रीय भारत सरकार से हमारा विनम्र अनुरोध है कि ऊर्जयन्त पर्वत को असामाजिक तत्त्वों से मुक्त कराकर शांति एवं सौहार्द का वातावरण निर्मित करने में सहयोग करे, जिससे हिन्दू एवं जैन दोनों धर्मो के अनुयायी अपने - अपने विधि - विधान के अनुसार पूजा - अर्चना कर सकें तथा भाई चारे के सार्वभौमिक सिद्धांत को विश्वपटल पर स्थापित कर सकें।
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