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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ (भाग्योदय) आया । चातुर्मास की अष्टानिका में वर्द्धमान कॉलोनी में इंद्रध्वज विधान हुआ । उसमें पंडित जी को दो तीन दिन बुलवाया गया । मार्मिक वक्तव्य दिये। उसी समय तत्व विचार का पुनः संपादन चल रहा था।
आप देखकर प्रसन्न हुए बृद्धावस्था में भी आप बिना सहारे के उठ बैठ जाते थे ।
विदुषी पुत्री / किरण जी को शिक्षित करने का कठिन श्रम आपने पूर्ण किया, श्रावकीय गुणों से परिपूर्ण आपने जब चौका लगाया, तब मेरे आहार हुये, पूरे आहार के समय आप खड़े होकर आहार चर्या को सम्पादित कराते रहे।
स्वाधीनता देखकर आत्मा के अनंत बल का प्रत्यक्ष भान हुआ यह अंतिम मिलन था ।
योग के बाद पठा में होने वाले सिद्धचक्र विधान में चला गया। गोम्मटेश्वर श्रवण बेल गोला में महामस्तकाभिषेक का मांगलिक कार्यक्रम चल रहा था, अन्यत्र सर्वत्र भी धर्ममय वातावरण था। मोराजी के सर्व सुन्दर भगवान बाहुबलि का भी महाभिषेक हो रहा था। उसी समय 12.35 बजे नश्वर शरीर छूट गया। यादें शेष रह गई। उनको मेरा शुभाशीष रहे ।
पंडित शिखर चंद्र जी से यह ज्ञात हुआ कि पंडित जी का स्मृति ग्रंथ सम्पादित हो रहा है। यह जानकर ह हुआ, सम्पादक मंडल से यह चाहता हूँ कि इसको ज्ञान से भरपूर करें ।
"भद्रं भूयादिति कल्याणं कलयतु शुभं संतनोतु । "
शुभाशीष
विगत वर्ष शिक्षागुरू पंडित जी के अमरत्व होने का समाचार जैन गजट पत्र के माध्यम से प्राप्त हुआ। आत्मा की ध्रुवता और शरीर की नश्वरता को तीर्थंकर भी नहीं बदल सकते। पुद्गल का परिणमन और . आयु कर्म की प्रकृति नियम से, पर्याय परिवर्तित कराता रहता। जीवन मरण पुद्गल का कार्य है । अनादि अनंत, सनातन- शाश्वत निज आत्मा निश्चय दृष्टि से सदैव अमर है, ऐसा जानकर महापुरूषों को शोक नहीं करना चाहिए ।
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- मुनि मार्दव सागर
किन्तु अनुपम निधि जो खो चुके उन महापुरूषों के प्रति श्रद्धांजलि अभिव्यक्त कर उनके जैसा आदर्श पथ अवश्यमेव अपनाना चाहिए। व्यवहार दृष्टि से वह आप से जुदा हुए निश्चय से तो सदैव भिन्न ही थे, ऐसा आगमानुसार सम्यक् चिन्तन करते हुए धर्मध्यानमय जीवन बिताते रहे। तनबल मन बल साथ दे तो महाव्रत अंगीकार कर लेना चाहिए ।
जिन्होंने मुझे ज्ञान प्रदान किया, उनकी आत्मा उन्हें केवल ज्ञान प्रदान करे। ऐसी सद्भावनाओं के •साथ आशीर्वाद / समाधिरस्तु
- मुनि विभव सागर
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