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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
मेरी - मंगल कामना
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दया चंद्र पंडित महा शुभ साहित्याचार्य ज्ञान ध्यानी निस्पृह, इसमें नहीं आश्चर्य पिता बने भगवान हैं, जैसे मथुरा जन्म शाहपुरा के शाह ने धन्य किया है जन्म सात्विक तब जीवन रहा, मन में उच्च विचार ऐसे वे नर रत्न थे, हृदय भारती सार
थाना गुण महा, कोमल हृदय महान ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा, धर्म बढ़ावे शान मेरा शुभआशीष है, ग्रंथ श्रेष्ठ बन जाय "योगी" का यह भाव है, सब जन लाभ उठाये
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
आशीर्वचन
श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर (म.प्र.) जैसे गौरवशाली महाविद्यालय के लगभग दो दशक तक प्राचार्य रहे और डॉक्टर (पंडित) दयाचंद्र जी साहित्याचार्य क्षुल्लक श्री गणेश वर्णी
के प्रत्यक्ष परोक्षशिष्य जैसे थे । वे वर्णी जी के संस्मरण बड़ा रस लेकर सुनाया करते थे वे स्वयं वर्णी जी के अनेक गुणों का अनुशरण करते थे । उनके सानिध्य में मेरे विद्यार्थी जीवन के सात-आठ वर्ष बीते हैं ।
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मेरे जीवन को जीवन्त शिक्षालय बनाने का श्रेय पंडित जी को है । उनके सहयोगी प्राध्यापक विद्वान पंडित मोतीलाल जी साहित्याचार्य, पंडित ज्ञानचंद्र जी व्याकरणाचार्य, पंडित वीरेन्द्र जी साहित्याचार्य, (स्व.) पंडित सरेश चंद्र जी शास्त्री,
पंडित विजय कुमार जी शास्त्री, पंडित भागचंद्र जी शास्त्री तथा प्रफुल्ल जी (वर्तमान पद्मसागर जी) ने भी पंडित जी का अनुशरण किया । ब्रह्मचारिणी किरण जी की प्रेरणा से पंडित जी मृत स्मृति ग्रंथ निकाला जा रहा है। यह श्रेष्ठ मनीषी का पावन स्मरण है, श्रेष्ठ कार्य है। इस हेतु मेरा सभी को शुभाशीष । पंडित जी को क्रमशः उत्तमगति की प्राप्ति हो, ऐसी मंगल भावना है।
बालाचार्य योगीन्द्र सागर
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आचार्य सुनील सागर औरंगाबाद
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