________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ (२) सम्यग्ज्ञान चिन्तामणि का चमत्कार - सम्यग्ज्ञान कपरिभाषा -
अन्यून मनतिरिक्तं, याथातथ्यं विना च विपरीतात् । नि:संदेहं वेद, यदाहुस्तज् ज्ञानमा गमिनः ॥
(समन्तमद्राचार्य: रत्नकरण्डश्रावकाचार) जो गुण वस्तु के सर्वांश को निर्दोष नि:संदेह दर्पण की तरह झलकाता है और प्रकाश के समान प्रकाशित करता है वह सत्यार्थ ज्ञान है पंच प्रकार है -
मतिज्ञानं श्रुतज्ञानं, अवधिज्ञानमेव च।
मन: पर्यय संज्ञानं, केवलज्ञान नाम च ॥ ज्ञानसूर्य की पंच किरणें प्रकाशित होती हैं (1) मतिज्ञान (2) श्रुतज्ञान, (3) अवधिज्ञान (4) मनःपर्ययज्ञान, , (5) केवलज्ञान । ये ज्ञान सूर्य चंद्र अग्नि, बिजली और दीपक से भी अधिक पदार्थो को स्वतंत्र प्रकाशित करने वाले हैं । इस ज्ञान चिन्तामणि की दश किरणें स्वस्व पदार्थ को आलोकित करती हैं | (१) किरण - पंच परमेष्ठीस्तवन, चार अनुयोग तथा सम्यग्ज्ञान के आठ अंगो को प्रकाशित करती है। (२) किरण - मतिज्ञान के ३३६ भेदों को सूक्ष्मरीति से प्रकाशित करती है (३) किरण - श्रुतज्ञान के द्वादश अंगो को, एवं अंगबाह्य भेदों को आलोकित करती
किरण - उमास्वामी कृत तत्त्वार्थसूत्र के आश्रय नयों को प्रकाशित करती है
किरण - गोम्मटसार जीवकाण्ड, राजवार्तिक के आधार से अवधि ज्ञान के भेद प्रमेद. (६) किरण - मन:पर्ययज्ञान का विस्तृत विवेचन प्रकाशित करती है। (७) किरण - केवलज्ञान काव्याख्यान एवं सर्वज्ञसिद्धि को प्रकाशित करती. (८) किरण - धवलाटीका के अनुसार चौसठ ऋद्धियों को सम्यक् प्रकाशित करती है। (९) किरण - धर्मध्यान संबंधी विवेचन के साथ शुक्ल ध्यान के भेदप्रमेदों को आ.शुभचंद्र एवं आ.
कार्तिकेय के ग्रन्थाधार पर प्रकाशित करना। (१०) किरण - शुक्ल ध्यान के भेदों को सकलविवेचन के साथ प्रकाशित करना ।
इस प्रकार सम्यग्ज्ञान चिन्तामणि ने दश किरणों के द्वारा द्रव्यों को प्रकाशित कर प्राणियों को प्रमोद प्रदान किया है । यह चिन्तामणि दोनों के मध्य में शोभित होकर सम्यक्दर्शन को तथा सम्यक्चारित्र को प्रबल करता है। लोकोक्ति प्रसिद्ध है -
नमस्तस्यै सरस्वत्यै, विमलज्ञानमूर्तये । विचित्रालोकयात्रेयं, यत्प्रसादात्प्रवर्तते ॥ ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण । इह परमामृत जन्मजरामृत रोग निवारण ।
(416
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org