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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वर्णी जी का प्रवचन सुनने वाली उस लड़की ने पिताजी को समझाया कि पिताजी ! इस संसार में सुख दुख दाता न राम है न रहीम है किन्तु सब प्राणी पूर्व में किये गये कर्मों के फल सुख दुख को भोगते हैं। अपन सबने भी पहले जीव हिंसा मांस खाना आदि जो पाप किये हैं उनका यह सुख दुख फल भोगना पड़ रहा है देखों, अपने पड़ोस में जो राम स्वरूप सराफ जी रहते है वे कभी भी मांस मछली नहीं खाते, शराब नहीं पीते । प्रतिदिन भगवान का भजन करते है इसलिए उनके सुख साता के दिन निकल रहे हैं इसलिए आप घबड़ावें नहीं धीरज रखें। अपनी लड़की के इस प्रकार के अच्छे वचन सुनकर धीवर पूंछने लगा, कि बेटी ! तुमने ये अच्छी बातें कैसे जानी, लड़की ने कहा, कि पिताजी! अपने पड़ोस में सराफ जी के घर काशी के एक बड़े पण्डित आये है। उनकी कथा को सुनने के लिए हम रोज जाते है, उनके उपदेश से हमनें ये सब बातें जानी हैं जो सच है धीवर ने साहस के साथ कहा कि हम भी कल से उन पण्डित जी के उपदेश सुनने के लिए तुम्हारे साथ चलेंगे । दूसरे दिन वह धीवर अपनी पुत्री के साथ वर्णी जी के प्रवचन को श्रवणार्थ गया । सुनकर प्रभावित हुआ । तत्पश्चात् धीवर ने जन्म पर्यंत मांस भक्षण एवं मदिरापान का त्याग कर दिया, यह है श्री वर्णी जी के समयोचित प्रवचनों का प्रभाव । अनेकांतवाद (स्यादवाद) एक न्यायालय : न्यायदर्शन, वैशेषिकदर्शन, सांख्यदर्शन, मीमांसादर्शन, बौद्धदर्शन आदि भारतीय प्राचीन एवं अर्वाचीन दर्शनों में एकांततत्व की मान्यता से परस्पर विरोध देखा जाता है। एकातंपक्ष के हठ से पारस्परिक द्वेष या संघर्ष भी देखा जाता है। वर्णीजी ने न्यायशास्त्रों का पठनकर यह निर्णय किया कि अनेकांत (स्यादवाद) एक ऐसा न्यायालय है जो सब दर्शनों का समन्वय कर मैत्री भाव जागृत करता है। उन्होंने आचार्य अमृतचंद्र का एक न्यायालय भी खोज लिया, जो दर्शनीय है : परमागमस्य जीवं निषिध्य जात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां, विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ आ. अमृतचंद्र पु. सि. पद्य - 2 satara आगम का मूल कारण है, जात्यन्ध पुरुषों के हस्तिविषयक विवाद का निर्णायक है, नयों की अपेक्षा सकल दर्शनों के विरोध का नाशकर मैत्रीभाव जागृत करता है, ऐसे अनेकांत को मैं, प्रणाम करता हूँ। यह निर्णय देखकर वर्णी जी की अनेकांत पर आस्था हो गई। अन्य प्रबुद्ध मानवों को भी दार्शनिक विरोध देखकर, वर्णीजी के समान मैत्रीभाव को जागृत कर लेना चाहिए । आदर्श देशभक्ति : सन् 1945 में - सुभाषचंद्र बोस द्वारा स्थापित आजादहिन्द सेना के रक्षार्थ जबलपुर में हुई आमसभा के मध्य वर्णी जी ने भाषण देते हुए अपनी चादर को समर्पित कर दिया । बोली द्वारा उस चादर से 3000/रुपये की आमद हुई। उस समय करतलध्वनि, जयध्वनि हुई । अनुसंधान पान 113 पर Jain Education International 409 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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