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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जिनदास नरेश, तुलुबदेश पर शासन करते थे। स्वयं भ. महावीर ने दक्षिण भारत में विहार किया था।" (भ. महावीर और उनकी आचार्य परम्परा प्र. भाग : पृ.279) । डॉ. नेमिचंद्र ज्योतिषाचार्य श्रुतकेवली भद्रबाहु और चंद्र गुप्त मौर्य का श्रवणबेलगोल के चंद्रगिरि पर्वत पर आगमन और तपस्या संबंधी वृत्तान्तों एवं शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यहाँ पर विद्यमान 12000 मुनियों (दिगम्बर) के संघ में से केवल आचार्य भद्रबाहु और चंद्रगुप्त मौर्य ही इस चंद्रगिरि पर तपस्या हेतु स्थिर हो गये थे और शेष मुनिराजों को दक्षिण की ओर भेज दिया गया था। संभवत: कतिपय मुनिराजों को मूडविद्री की ओर भी विहार करने का अवसर प्राप्त हुआ हो। यह घटना ईसापूर्व 365से पूर्व की है, जब कि आचार्य भद्रबाहु ने नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया था। निषधियाँ या समाधियाँ : ___ मूडविद्री में समाधियों की अद्भुत रचना दर्शनीय है ऐसी रचना भारत में संभवत: अन्यत्र नहीं है। ये समाधियाँ 18 मठाधिपतियों तथा दो व्रती श्रावकों की ज्ञात होती हैं। किन्तु लेख केवल दो ही समाधियों पर अंकित हैं। समाधियाँ तीन से लेकर आठ तल (खण्ड) तक की बनी हैं। इनका एक तल दूसरे तल की ढलवाछत के द्वारा विभक्त होता है। इस कारण ये समाधियाँ काठमाण्डू या तिब्बत के पैगोडा जैसी आकृति वाली दिखाई देती हैं। इनकी प्रत्येक मंजिल की छत ढलावदार है यह भारत में विचित्र शैली की ही रचना दर्शनीय है । मूडविद्री क्षेत्र में 18 प्राचीन दि. जैन मंदिर, चार चौबीसी मंदिर, पाँच मानस्तंभ और सैकड़ों प्राचीन मूर्तियाँ विराजमान है। अनेकों विशाल एवं सुन्दर मूर्तियाँ अपने परिकरों के साथ शोभित है सहस्रकूट चैत्यालय भी दशर्नीय है। मूडविद्री न केवल एक प्रमुख जैनकेन्द्र, तीर्थ, अमूल्य प्रतिमा, संग्रहालय, तथा अपूर्व शास्त्र संग्रह का आयतन है, अपितु महाकवि रत्नाकार की जन्मभूमि का भी श्रेष्ठ स्थान हैं। महाकवि की अमरकृतियाँ भी प्रसिद्ध हैं। जैसे भरतेशवैभव, रत्नाकरशतक आदि। उनकी स्मृति में यहाँ पर रत्नाकर नगर ' नाम की एक कालोनी भी बसाई गई है। उक्त कारण विशेषों से यह मूडविद्री क्षेत्र श्रद्धा के साथ पूजा, वन्दना एवं कीर्तन के योग्य है। (भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ: पंचमभाग पृ. 172) (309) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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