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कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इसमें 9वीं शती से 11वीं शती तक की अनेक मूर्तियाँ विराजमान हैं। इस मंदिर के अंतर्गत एक कांस्य का मंदिर है जिसमें चारों दिशाओं में तीर्थकर आदि की 96 मूर्तियाँ विद्यमान हैं।
जैन साहित्य का केन्द्र :
संस्कृत प्राकृत और कन्नड़ साहित्य की दृष्टि से मलखेड (मान्यखेड) अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। राजा अमोधवर्ष (प्रथम) का द्वितीयनाम नृपतुंग ने स्वयं संस्कृत में 'प्रश्नोत्तर मालिका' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। जिसका विषय नैतिक आचार विचार था । यह ग्रन्थ दूर दूर तक बहुत लोकप्रिय हो गया । यह प्रसिद्ध है कि इस ग्रन्थका अनुवाद तिब्बती भाषा में भी हो गया था। इसी कारण से इस राजा की विद्वत्ता, लोकप्रियता एवं प्रभुत्व का अनुमान लगाया जा सकता है। इस ग्रन्थ के अंतिम छन्द से ज्ञात होता है कि अमोघ वर्ष ने राजपाट को त्यागकर दिगम्बर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली थी।
नृप
प्रसिद्ध “शाकटायन व्याकरण' ग्रन्थ पर भी आपने अमोघवृत्ति नामक टीका लिखी थी ऐसा विषय एक टीका के नाम से प्रकट होता है। अतएव यह टीका इनके नाम से ही प्रसिद्ध हुई है।
अमोध वर्ष के शासन काल में ही महावीराचार्य ने स्वयं 'गणितसार' ग्रन्थ की रचना की थी । कन्नड़ भाषा में अमोधवर्ष ने 'कविराज' नामक अलंकार । छन्दशास्त्र विषयक ग्रन्थ का प्रणयन किया था । यह ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है। इसमें गोदावरी नदी से लेकर कावेरी नदी तक विस्तृत कानड़ी प्रदेश का प्रसंगोपात्त सुन्दर वर्णन है। इससे इस प्रदेश की तत्कालीन संस्कृति का भी सुन्दर परिचय प्राप्त होता है।
राष्ट्रकूट नरेशों के शासन काल में जैन साहित्य की प्रशंसनीय उन्नति निरन्तर होती रही । इस समय जो ग्रन्थ निर्माण इस प्रान्त में हुआ, उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार ज्ञातव्य है :
ग्रन्थनाम
भाषा
क्रम 1. 2. 3. 4. 5.
उत्तरपुराणादि यशस्तिलकचम्पू 3 ग्रन्थ शान्तिपुराण आदिपुराण अजितपुराण
रचयिता आचार्य जिनसेन (द्वि) आ. सोमदेव पोन्नमहाकवि पम्पकवि रतनकवि महाकवि पुष्पदन्त
संस्कृत संस्कृत कन्नड़
कन्नड़
14
6.
महापुराण
अपभ्रंश
7.
नागकुमार चरित
8.
यशोधर चरित
9.
प्रश्नोत्तर रत्नमालिका
अमोघवर्ष
33
10.
शाकटायन अमोघवृत्ति
11.
गणितसार
आचार्य महावीर
12. कविराजमान
अमोघवर्ष
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304
संस्कृत
संस्कृत
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समय
8 वीं सदी ई. 959
सन् 950
सन् 941
सन् 993
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
अज्ञात
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