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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भारतीय साहित्य संस्कृति एवं इतिहास के आलोक में
कर्नाटक प्रदेश और श्रवणबेलगोल तीर्थ
भारत राष्ट्र का कर्नाटक वह प्राचीन प्रदेश है कि जिसने राज्यों के संघर्षकाल में और अकाल (दुर्भिक्ष काल) में भी भारतीय सहित्य, संस्कृति, दार्शनिक ग्रन्थों और सिद्धांत ग्रन्थों की सुरक्षा का आदर्श विश्व में उपस्थित किया है। वर्तमान में इतिहास एवं पुरातत्व इसका साक्षी है ।
धर्मस्थलों के निर्माण, प्रसार, प्रचार और प्रभाव पर पुरातत्ववेत्ता, इतिहासज्ञों और अन्वेषकों ने गहन अध्ययन एवं अन्वेषण किया है और उनके महत्वपूर्ण विचारों को तीर्थ, कला एवं संस्कृति की दृष्टि से वास्तविक तथा प्रभावक माना गया है। कर्नाटक प्रदेश के जैनतीर्थ, धर्मस्थल और इतिहास पर मनीषी महोदयों के अधोलिखित विचार ज्ञातव्य है :1. सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता श्री सी. शिवराम मूर्ति ने लिखा है "दक्षिण भारत दिगम्बर जैन धर्म का एक
बड़ा केन्द्र रहा है." 2. श्री शिवरोममूर्ति विरचित पुस्तक की भूमिका में स्व.श्रीमती इन्दिरा गाँधी (भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री)
ने लिखा है :
"जैन धर्म में सत् की प्रकृति का गंभीर अन्वेषण निहित है। उसने हमें अहिंसा का सन्देश दिया है, उसका उदय भारत के हृदय प्रदेश में हुआ था, किन्तु उसका प्रभाव देश के समस्त भागों में फैल गया। तमिल प्रदेश के बहुत प्राचीन साहित्य के बहुत कुछ अंश का मूल जैनतत्व है । कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के सुन्दर जैनमंदिर और मूर्तियों संबंधी स्मारक तो विश्व प्रसिद्ध है। "(भारत के दिग. जैन तीर्थ पंचम भाग) ऐतिहासिक महत्व :
जैन धर्मावलम्बी राष्ट्रकूट राजाओं ने मलखेड (प्राचीन मान्यखेट) में ई. सन् 753 से लगभग 200 वर्षों तक राज्य किया था। दक्षिण के इस राज्य ने अपने उत्कर्षकाल में इस प्रदेश के इतिहास में वैसी ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया गया था जैसा कि 17वीं सदी में मरहठों ने निर्वाह किया। इस वंश का सब से प्रभावशाली नरेश अमोध वर्ष सन् 814 से 878 तक शासक रहा। उसने इस राजधानी का विस्तार करते हुए अनेक महल, उद्यान एवं दुर्ग इन सबका निर्माण कराया। भग्न किले इस समय भी दृष्टिगत होते हैं। इन 200 वर्षों की अवधि में मान्यखेट जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। उस युग की पाषाण और कांस्ययुग निर्मित मूर्तियाँ आज भी यहाँ दृष्टिगत हो सकती है। क्षेत्रदर्शन :मलखेड ग्राम में 'नेमिनाथ' बसदि नामक एक जैन मंदिर नवमी शताब्दी का मान्य किया जाता है।
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