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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इसलिए उनमें परिणमन होना भी स्वाभाविक है । अत: वस्तु तत्त्व की सिद्धि के लिए स्याद्वाद का आश्रय लेना ही श्रेयस्कर है। उससे ही निमित्त तथा उपादान का सामञ्जस्य कार्य के प्रति सिद्ध होता है । सामयिक कर्तव्य र्तमान विज्ञान का युग है। मानव बुद्धिवाद और तर्कवाद की धारा को अपना कर उन्नति की ओर जाना चाहते हैं । राष्ट्रों और समाजों में महान् परिवर्तन हो रहे है। राष्ट्र नव्यनिर्माण की ओर प्रगति कर रहा है। ऐसी अवस्था में किसी भी विषय को विवाद ग्रस्त न बनाकर उसे सरलता से शीघ्र ही सुलझा लेना ही अच्छा है। इससे समाज की शक्ति क्षीण न होगी, पारस्परिक मनोमालिन्य जागृत न होगा, व्यर्थ भेदभाव का संचार न होगा, समय और द्रव्य का अपव्यय न होगा । यदि हम सब मिलकर शान्तिरीत्या विवादापन्न विषयों का हल नहीं निकालते हैं, केवल विवाद में पड़कर प्रश्न को जटिल करना चाहते हैं तो इसमें शक नहीं कि नया मत स्थापित हो सकता है। जिससे कि देश के साथ होने वाली हमारी महती प्रगति में महान् विघ्न उपस्थित हो जायेगा । अतः समय के अनुकूल जागृत होकर देश के साथ प्रगति करना हम सब का कर्तव्य है । वर्तमान जैन समाज में निमित्तपादान के आधार पर जो बहुत विवाद खड़ा हो गया है उसके शान्त करने के लिए ही यह संकेतमात्र है। ओम शान्तिः ॥ * * Jain Education International 285 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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