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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ने जिस प्रकार द्रव्य की शक्तियों एवं गुणों का आख्यान कर उनकी उपयोगिता को सिद्ध किया है, उसी प्रकार वैज्ञानिकों ने भी पदार्थो में अनंत शक्ति, गुण , दशाएँ (पर्याय), व्यय नित्य - उत्पाद, संयोग एवं वियोग को अपेक्षाकृत स्वीकृत किया है । वैज्ञानिकों ने विज्ञान प्रयोगशाला में, अनेक वस्तुओं तथा अनेक अंशो के सम्मिश्रण एवं पृथककरण से हजारों पदार्थो के आविष्कार किये है जो वर्तमान में दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
इतना विशेष ज्ञातव्य अवश्य है कि अन्तरात्माज्ञानी एवं विश्वदर्शी भ. महावीर स्वामी ने जो सूक्ष्मपदार्थ विज्ञान दर्शाया है उसकी तुलना आधुनिक भौतिक विज्ञान नहीं कर सकता । भौतिक विज्ञान जहाँ पर अपनी सीमा समाप्त करता है वहाँ भ महावीर का आध्यात्मिक विज्ञान अपनी सीमा प्रारंभ करता है तथापि आध्यात्मिक विज्ञान और भौतिक विज्ञान में अनेक तत्वों में समानता एवं अनुकूलता सिद्ध होती है । यथा अनेकान्त / स्याद्वाद के विषय में कुछ वैज्ञानिक उद्धरण: -
__ अमेरिका राष्ट्र के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. डॉ. आर्चीब्रह्म पी.एच.डी.महोदय ने अनेकान्त के महत्व को स्वीकृत किया है -
"The Anehanta is na impartant principle of Jain logic, not commonly asserted by the western or Hindu Lagician, witch Promises much for world -pease through metaphysical hormony." (he Voice of Ahimsa Vol. I, P. 3.)
जर्मनदेश के विज्ञानयोगी सर अल्वर्ट आइन्स्टाइन महोदय ने अपने युग में स्यावाद और विज्ञान के समन्वय में महान् प्रयत्न किया । आपने सन् 1905 में सापेक्षवाद (he Theroy of Relativity) का आविष्कार कर, विविध समस्याओं के समाधान में और दैनिक जीवन व्यवहार में सापेक्षवाद का उपयोग किया । सापेक्षवाद ही स्यावाद का दूसरा पर्याय शब्द है - (धर्मयुग 22 अप्रैल सन् 1956)
अंग्रेजी भाषा में स्यावाद के विषय में आइन्स्टाइन के सद्विचार -
"We can know only the relative truth, the real truth is knowen to the unicersal observer."
तात्पर्य - हम सभी मानव अल्प शब्द ज्ञान वाले हैं, इसलिये केवल सापेक्षसत्य को ही जानने में समर्थ हो सकते हैं। वस्तुओं के निश्चय पूर्ण सत्य को तो (Absolute truth) केवल विश्वदृष्टा ही जानने में समर्थ है। स्पष्टभाव यह है कि हम सब अल्पज्ञानी मानव अपेक्षावाद (स्याद्वाद) से ही वस्तु के एक देश को जान सकते हैं परन्तु विश्वदर्शी आत्मा प्रमाण ज्ञान के द्वारा लोक के सब पदार्थो को स्पष्ट जानने में समर्थ है।
(अनेकान्त वर्ष 11, किरण 3, पृ. 243) पाश्चात्य दार्शनिक विद्वान विलियमजेम्स महोदय के प्राग्मेटिज्म (Pragmatism) के सिद्धांत की तुलना, अनेकदृष्टियों से स्यावाद के साथ सिद्ध होती है।
ग्रीकदेश में स्थापित इलियाटिक (Eleatic) सम्प्रदाय की मान्यता थी - “यह जगत परिवर्तन से हीन नित्य है ।" इसके विरुद्ध हिरीक्लीटियन (Herectition) सम्प्रदाय की मान्यता थी - “जगत सर्वथा परिवर्तनशील अनित्य है।“ परस्पर विरुद्ध इन दोनों मतों के समंवय को करने वाले तीन दार्शनिक विद्वानों की
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