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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 11. जैन दर्शन में वनस्पति मं 4 प्राण - स्पर्शन, कायबल, आयु, श्वास । विज्ञान - वनस्पति में प्राण, श्वास, सुख, दुख वेदन क्रेस्कोग्राफ यंत्र से सिद्ध होते हैं।
__(डा. बोस । डा. जगदीश चंद्र वसु) भारतीय वैज्ञानिक । जैन दर्शन में वनस्पति वर्णन वैज्ञानिक व्यावहारिक तथा प्राचीन है
(वैज्ञानिक डा. कोहल) 12. जैनदर्शन में तैजस शरीर स्थूल शरीर में माना गया है।
विज्ञान - मनुष्य के शरीर में विद्युत शक्ति का परिमाण 500 या 700 बोल्ट रहता है इसको इलेक्ट्रिकल बाडी कहते हैं।
(आफ्रिका के एक डाक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट सीकदिसोल)
(जैन धर्म और दर्शन पृ. 82) 13. जैन दर्शन में लोक रचना अनादि, भूस्थिर चपटीगोल, सूर्य चंद्रगमन।।
विज्ञान - लोक रचना का आदि - अंत नहीं, पृथ्वी स्थिर, चपटी, गोल, सर्यचंद्र ग्रहण - गमन,ज्योतिष विद्या, गणित की प्राचीन मान्यता जैन दर्शन से सिद्ध, मानवीय श्रद्धा पर आश्रित ।
(डा. जिम्मर, डा. कोहल, डा. आइनस्टीन, डा. शूविंग) 14. जैन दर्शन में अजीव एवं बहु प्रदेशी 4 द्रव्य - धर्म अधर्म, आकाश, पुद्गल हैं
विज्ञान - Ether (ईथर) = धर्म द्रव्य । Nonether(नॉन ईथर) = अधर्मद्रव्य (एरियल)
Space (स्पेश) = आकाश । ime (टाईम) = काल । (वैज्ञानिक आइनस्टीन) 15. जैनदर्शन में शब्द पुद्गल (अजीव) द्रव्य का परिणमन है, आकाश का गुण नहीं।
विज्ञान - वैज्ञा. मारकोनी ने (इटली) रेडियो ; वै. ग्राहमवेल अमेरिका ने टेलीफोन द्वारा, वै. मोर्श अमे. नेटेली ग्राफ से, वै. वरबीनर अमे. ने ग्रामोफोन से, वै. वेअर्ड ने (इंग्लैण्ड) टेलीविजन से और वै. एडीसन अमे.ने सिनेमा के आविष्कार से शब्द को जड़ द्रव्य का परिणमन सिद्ध किया है। 16. जैन दर्शन में पुद्गल के भेद अणु और स्कन्ध की मान्यता प्राचीन कथित है।
विज्ञान - डा. जेकोबी वैज्ञानिक ने जड़ द्रव्य के परमाणु एवं स्कंध (पिण्ड) को जैन दर्शन में ऋषि
कणाद (न्यायदर्शन) से भी प्राचीन सिद्ध किया है ।। (जैनधर्म और दर्शन) 17. दार्शनिक जैनधर्म में - 'कालश्च' (तत्त्वार्थ सूत्र अ. 5, सूत्र 39 आचार्य उमास्वामी, वि.द्वि, शती
प्रथम चरण) सूत्र के प्रमाण से कालद्रव्य की मान्यता है।
विज्ञानसम्मत - फ्रान्स के वैज्ञानिक वर्गसन ने सिद्ध किया है कि “समस्त विश्व में कालद्रव्य की सत्ता के बल पर ही क्षण - क्षण में परिवर्तन हो रहा है। वस्तुएं देखते - देखते नवीन से पुरानी व जीर्ण शीर्ण हो रही है। काल एक Namic Reality(क्रियात्मक सत्ता) है। काल के प्रबल अस्तित्व को स्वीकार करना अनिवार्य है।"
(जैनधर्म पृ. 26)
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