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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ महावीर भगवान का निर्वाण
कार्तिककृष्णस्यान्ते, स्वातावृक्षे निहत्य कर्मरज: । अवशेषं संप्रापद् व्यजरामर मक्षयं सौख्यम् ॥
(पूज्यपादाचार्य महावीर निर्वाण भक्ति, श्लोक । 17) तात्पर्य :- बिहारप्रान्तीय पावापुर के उद्यान से भ. महावीर कार्तिक कृष्णा अमावस्या के प्रातः स्वातिक्षत्र में अवशेष कर्मरज को नष्ट कर अक्षय अजर अमर मुक्ति पद को प्राप्त हुए। इतिहास के पृष्ठों में भगवान महावीर
भगवान महावीर से पूर्व मध्य एशिया के नगरों में जैनधर्म का प्रसार था । यूनान के इतिहास में अहिंसाधर्म का उल्लेख प्राप्त होता है । यूनान के दार्शनिक पैथेगोरस, भगवान महावीर के समकालीन थे। वे पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत को मानते थे। इस विषय में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है।
पूरी संभावना है कि भगवान महावीर के पहिले मध्य एशिया के स्पिया, अमन, समरकन्द, वलख आदि नगरों में जैन धर्म फैला था। ईशा पूर्व छठी शताब्दी में यूनान के इतिहासकार हेरोडोन्स ने अपने इतिहास में एक ऐसे भारतीय धर्म का उल्लेख किया है जिसमें मांस वर्जित था, जिस धर्म के अनुयायी शाकाहारी थे। 580 ईशा पूर्व उत्पन्न दार्शनिक पैथेगोरस जो भगवान महावीर एवं महात्मा बुद्ध के समकालीन थे। जीवात्मा के पुर्नजन्म व आवागमन तथा कर्मसिद्धांत में विश्वास करते थे। जीव हिंसा तथा मांसाहार के त्यागने का उपदेश देते थे। कुछ वनस्पतियों को दार्शनिक दृष्टि से अभक्ष्य मानते थे। इस सम्प्रदाय के विचारक आयोनियन या आरकिक कहलाते थे" उपरोक्त विचारों का सादृश्य जैन धर्म से मिलता है।
. (रतनलाल जैन, एडवोकेट, जैनधर्म पृ. 194-295) ईसा पूर्व छठी शदी में काशीनरेश शिशुनाम ने मगधराज्य पर अधिकार जमा लिया । इस वंश में सबसे पहिला प्रतापी राजा श्रेणिक बिन्दुसार था जो भ. महावीर का परमभक्त था। राजा श्रेणिक ने छोटे छोटे राज्य एवं अंगदेश को जीतकर और अपने राज्य में मिलाकर सम्राटपद को प्राप्त कर लिया था।
कलिंग देश में जैन धर्म प्राचीनकाल से रहा है। इस राज्य के इष्टदेव कलिंगजिन रहे हैं। ईशापूर्व छठी शदी में कलिंग देश का राजा जितशत्रु था जो तीर्थकर महावीर के पिता महाराज सिद्धार्थ के बहिनोई थे। ईशापूर्व 424 में मगध के राजा नन्दिवर्धन ने कलिंग देश पर आक्रमण करके वहां के इष्ट देवता कलिंग जिन (भगवान ऋषभ की प्रतिमा) को ले गये थे। भ. पार्श्वनाथ के समय से ही वैशाली के वज्जिसंघ. कौशल मगध-आदि देशों के राजवंशों में जैन धर्म की उपासना होती थी।
भ. महावीर ने उभय तपस्या के माध्यम से केवल ज्ञान सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके ई. पू. 527 से 557 ई. पू. 30 वर्ष तक भारत एवं आर्यखण्ड के विभिन्न प्रदेशों में विहार करके जैनधर्म का प्रसार किया । उत्तरी तथा मध्यभारत के अनेक राजा और प्रजागण भ. महावीर के भक्त बन गये।
उज्जयिनी में भ. महावीर के समय से मौर्य साम्राज्य के 164 ई. पू. पतन तक जैनधर्म की प्रभावना
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