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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ___कंकालीटीला मथुरा उ.प्र. से महावीर की एक मूर्ति नृप कनिष्ठ के राज्यकाल 53 ईशा पूर्व की प्राप्त हुई हैं, वह सर्व प्राचीन प्रतिमाओं में से एक है।
इसके अतिरिक्त कंकालीटीला मथुरा से ऐसी जिनमूर्तियाँ एवं अन्य शिलापट्ट प्राप्त हुए है जिन पर ईशा पूर्व प्रथमशती से ईस्वी प्रथमशती तक के लेख अंकित हैं और जिनमें महावीर-वर्धमान को नमस्कार किया गया है। ये लेख गणना में सात हैं। जिनमें प्रथमलेख प्रस्तुत किया जाता है- "नमो अर्हतो वर्धमानस" (पं. विजयमूर्ति एम. ए. शास्त्राचार्य: जैनशिलालेख संग्रह भाग 2 शि. ले. नं. 5 पृष्ठ 12 सन् 1952) विस्तार के भय से अन्यलेख अंकित नहीं किये गये हैं।
वाडली राजस्थान से प्राप्त शिलालेख सर्वप्राचीन हैं, जिनमें भ. महावीर का उल्लेख है । इसको पुरातत्वज्ञों ने इस प्रकार पढ़ा है "वीराय भगत्व 84 चतुरासिनिवस ज्ञापे सालिमालिनीये रं निविद्रमिज्मिके" अर्थात भ. महावीर के लिये 84 वें वर्ष में नमस्कार कर माध्यमिका में सालि मालिनी-इत्यादि। ठा. जायसवल ने इसका काल 374 ईशा पूर्व माना है। यदि यह वी. नि. सम्वत् हो तो इसका काल 443 ईशा पूर्व होगा। वर्तमान में यह शिलालेख अजमेर राजस्थान के संग्रहालय में विद्यमान है। इसको यहाँ के संग्रहालयाध्यक्ष (कयूरेटर) रायबहादुर पं. गौरी शंकर जी ओझा ने पढ़ा है |उसका सारांश भी दर्शाया है।
बिहार प्रान्तीय राजगृहक्षेत्र के मणियार मठवाले शिलालेख में यद्यपि महावीर का उल्लेख नहीं है तथापि उसका सम्बन्ध महावीर से अवश्य है। भ. महावीर के अनन्यतम भक्त मगधदेश के सम्राट श्रेणिक थे और भ. महावीर का प्रथम उपदेश विहार प्रान्तीय राजगृह के विपुलाचल पर हुआ था। जिस मूर्ति पर यह लेख अभिलिखित है जिसका पादपीठ का अंग ही शेष है, जिसमें विपुलाचल और उस पर श्रेणिक राजा की अवस्थिति दर्शित है । इस पर कुशाणकालीन (ईश्वर प्रवाती) लिपि में यह लेख अंकित है। __"पर्वतो विपुल राजा श्रेणिक.....इस लेख से जैन मान्यता की पुष्टि होती है कारण कि विपुलाचल पर श्रेणिक महाराज कालक्षेप करते थे, क्योकि वहां भगवान महावीर का समवशरण आया था । समवशरण में महाराज श्रेणिक ने, इन्द्रभूति गौतम पुरोहित के प्रति आत्मज्ञान के लिये हजारों प्रश्न किये थे। इन्द्रभूति गणधर भ. महावीर के समशवरण के प्रधान श्रोता थे। (बौद्धविद्वान श्री धर्मानन्दजी कौसाम्बी)।
महावीर ने 12 वर्ष के तप और त्याग के पश्चात् ज्ञानशक्ति के द्वारा अहिंसा का खूब सन्देश दिया। उस समय देश में बहुत हिंसा होती थी। हिंसात्मकयज्ञ और बलिदान होते थे। उसको बन्द कराया, अगर उन्होंने अहिंसा का संदेश न दिया होता तो आज हिन्दुस्तान में अहिंसा का नाम भी नहीं लिया जाता।
(सुघोषा पत्र सं 1984-85 कार्तिकमासं) स्व. महात्मा गांधी को एक महान् राष्ट्र पिता मानते थे....
"मैं आप लोगों से विश्वासपूर्वक यह बात कहूंगा कि महावीर स्वामी का नाम इस समय यदि किसी भी सिद्धांतों के लिये पूजा जाता है तो वह अहिंसा है। मैने अपनी शक्ति के अनुसार संसार के जुदे-जुदे धर्मो का अध्ययन किया है और जो सिद्धांत मुझे योग्य मालूम हुए हैं उन अहिंसा आदि का मैं आचरण भी करता हूं।" (जैन जगत अप्रेल 1927)
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