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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ स्वार्थ सिद्धि के लिए आत्मघात कभी नहीं करना चाहिए, कारण कि मांस भक्षी प्राणी दान का पात्र
नहीं होता, मांस का दान करना अन्याय है, तथा आत्मा का घात करना महापाप है। (12) केवल स्व पर प्राणों का घात करना ही हिंसा नहीं है किन्तु क्रोध मान मायाचार लोभ झूठ चोरी
व्यभिचार परिग्रह जुआ खेलना, मांस भक्षण मदिरापान वैश्यासेवन शिकार खेलना परस्त्रीगमन भय ग्लानि हास्य अरति शोक इन्द्रिय भोग अन्याय अभक्षभक्षण और मिथ्या धारणा आदि सभी दुष्कर्म भी हिंसा है और इन सब का त्याग करना अहिंसा है। इससे सिद्ध होता है कि सब पापों में हिंसा प्रधान पाप है और सब धर्मो में अहिंसा प्रधान धर्म है।
अहिंसा का विरोधी भाव हिंसा है, हिंसा से मानव, नैतिक स्तर, सद्विचार और मानसिक शुद्धि से दूर रहता है, इसलिए वह प्राणियों की हिंसा करता है, मांस मछली अण्डे खाता है, मदिरा सेवन करता है जो मानव कर्तव्य नहीं है । इस मानव ने मांस को अपना दैनिक भोजन बना लिया है, वह मांस हिंसा की उपज है। जो प्राणी या मानव हिंसा का पूर्ण त्याग करते है वे कभी भी मांस भक्षण नहीं करते इस मांस भक्षण को छुड़ाने के लिए सभी सम्प्रदायों ने मांसाहार का विरोध किया है। उन सम्प्रदायों के आचार्यो तथा संतों ने मांस मछली अण्डों के विरोध में निम्न प्रकार अपने विचार व्यक्त किये है। 1. मदिरापान, मछली का भोजन, मधु, मांस भोजन अपवित्र भोजन ये सब खूनों से ही कल्पित हुए हैं,
ये वेद कल्पित नहीं है (महाभारत अध्याय 265) 2. अग्नि की प्रार्थना करते हुए कहा गया है "हे अग्निदेव ! तू मांसभक्षकों को अपने ज्वाला मय मुख में
रख ले' (ऋग्वेद 10-872) "जंगली जानवरों को पीड़ा न देना चाहिए"। “जो दूसरों के प्राणों की रक्षा करता है वह गोया तमाम मनुष्य समाज के प्राणों की रक्षा करता है।" "जो कोई अन्य प्राणियों के साथ दया का व्यवहार करता है अल्लाह उस पर दया करता है । मूक पशुओं की खातिर अल्लाह से डरो"। (कुरान शरीफ 5-6-3-8) जो कोई मांस मछली खाता है और मादक वस्तुओं का सेवन करता है उसके तमाम पुण्य नष्ट हो जाते है। मांस मांस सब एक है, मुर्गी हिरणी गाय । आँख देख कर खात हैं, ते नर नरकहिं जाय ॥1॥ (गुरु नानक देव) मांस मछलियाँ खात है, सुरापान से हेत। वे नर नरकहिं जायेंगे, माता-पिता समेत ॥ तिल चर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान । काशी करवट ले मरे, तो भी नरक निदान ॥2॥ (कबीर दास जी)
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