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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ "जैन ग्रन्थों में जिस अहिंसा धर्म की शिक्षा दी गई है उसमें यथार्थ में श्लाघनीय समझता हूँ"।
(डॉ. जोहन्नेस हर्टल जर्मनी - 17-6-1908 का पत्र) "अहिंसा वीर पुरुषों का धर्म है , कायरों का नहीं" (सरदार श्री वल्लभ भाई पटेल अनेकान्त वर्ष 6 पृ.39) "भगवान महावीर के सत्य और अहिंसा संबंधी उपदेश विश्व के वर्तमान संघर्षो और समस्याओं के समाधान की दृष्टि से विशेष महत्व रखते है । यदि हमें अपनी महान् परम्पराओं का निर्वाह करना है तो हमें अपने और विश्व के हित के लिए इन सिद्धांतों के प्रति आत्मविश्वास का पुनर्नवीकरण करना होगा"। (दिव्य ध्वनि देहली - वर्ष 1, अंक 6)
स्व. डॉ. एस. राधाकृष्णन राष्ट्रपति भूतपूर्व ।। "यदि हम भ. महावीर की कुछ शिक्षाओं को भी आंशिक रूप में अपने दैनिक जीवन व्यवहार में क्रियान्वित करने में सफल हो जाये तो यह एक बहुत बड़ा कार्य होगा"। (दिव्य ध्वनि देहली वर्ष 1 अंक 6)
भू.पू. उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ।। "अहिंसा का सिद्धांत आज भी उतना ही सत्य है जितना कि 2500 वर्ष पूर्व था। आज देश को अहिंसा और अपरिग्रह की ओर ले जाने की आवश्यकता है।
(इन्दिरागाँधी मार्च 1970 देहली) स्वामी दयानंद जी ने मांस मदिरा तथा मधु के त्याग की शिक्षा दी और वस्त्र से पानी छानकर पीने का उपदेश दिया। वेदतीर्थ आचार्य श्री नरदेव जी शास्त्री के शब्दों में स्वामी दयानंद जी यह स्वीकार करते थे कि श्री महावीर स्वामी ने अहिंसा आदि जिन उच्चकोटि के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है वे सब वेदों में विद्यमान हैं।
(श्री वर्धमान महावीर पृ. 69) मैं अपने को धन्य मानता हूँ कि मुझे महावीर स्वामी के प्रदेश में रहने का सौभाग्य मिला है। अहिंसा जैन दर्शन की विशेष सम्पत्ति है।
(स्व. डॉ. श्री राजेन्द्र प्रसाद जी अनेकान्तवर्ष 6 पृ. 39) • भगवान महावीर एक महान तपस्वी थे। जिन्होंने सदा सत्य और अहिंसा का प्रचार किया । इनकी
जयंती का उद्देश्य मैं यह समझता हूँ कि इनके आदर्श पर चलने और उसे मजबूत बनाने का यत्न किया जावे।
(राजर्षि श्री पुरूषोत्तम दास जी टण्डन वर्धमान देहली अप्रैल 53 पृ. 8) मैं भ. महावीर को परम आस्तिक मानता हूँ। श्री भ. महावीर ने केवल मानव जाति के लिए ही नहीं परन्तु समस्त प्राणियों के विकास के लिए अहिंसा का प्रचार किया।
(आचार्य श्री काका कालेलकर जी ज्ञानोदय वर्ष 1 पृ. 66) -6
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