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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
होना चाहता है। इस युग के कुछ वैज्ञानिक तो चंद्रलोक पर भी अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए राकेट से चंद्रलोक की यात्रा कर रहे हैं और इसके लिए राकेट, एटमबम, हाइड्रोजन बम आदि भयंकारी आविष्कारों से अखिल विश्व का मानष पटल कम्पित कर रहें हैं। सारा विश्व तृतीय विश्व युद्ध की शंका से कम्पित हो रहा है विज्ञान का क्षेत्र ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है त्यों-त्यों विश्व में अशान्ति बढ़ती जाती है। दैनिक जीवन से मानव इस अशान्ति का अनुभव भी कर रहा है। इस अशान्ति के अनुभव से यह तो प्रत्यक्ष सिद्ध हो गया है कि विज्ञान से विश्व में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती ।
विश्व शान्ति या उभय लोक की जीवन शान्ति का सफल साधन क्या है ? इस गंभीर प्रश्न का सफल समाधान, समीचीन विवेक से परामर्श करने पर यही सिद्ध होगा कि अहिंसा, अपरिग्रह वाद, अनेकान्त, अध्यात्मवाद इन वास्तविक सिद्धांतों के द्वारा ही प्राणी मात्र का सर्वोदय या परम कल्याण होना अनिवार्य है। अमेरिका के डालर साम्राज्यवाद और रूस देश के साम्यवाद (कम्यूनिज्म) से या विश्व में प्रचलित अन्यवादों से विश्व में शान्ति संभव नहीं है । भ. महावीर ने अहिंसा मूलक समाजवाद (साम्यवाद) के आधार पर ही सर्वोदय या विश्वकल्याण घोषित किया। विश्व युद्ध से तो व्यक्ति विशेष की क्षणिक शान्ति या स्वार्थ सिद्धि हो सकती है। पर विश्व शान्ति या सर्वोदय होना असम्भव है। भारत विजय नाटक में महात्मा गाँधी पात्र द्वारा स्पष्ट कहा गया है कि -
"सती युद्धे प्राणी हिंसा शान्ति भङ्गः प्रजाक्षयः । आयनाशो व्ययाधिक्यं नास्माद् युद्धं समर्थये ॥”
(भारत विजय नाटक श्लोक 46)
भावार्थ - युद्ध के होने पर प्राणियों की हिंसा होती है, शान्ति सुख का नाश, प्रजा का विनाश, आमद नाश होता है और खर्च तथा मँहगाई अधिक हो जाती है इसलिये हम (गाँधी) युद्ध का समर्थन कभी भी नहीं कर सकते। अंग्रेजी में लोकोक्ति है - "Live and let live and help others to live" अर्थात् स्वयं विरह तथा दूसरों को भी जीवित रहने दो और दूसरों को जीवित रहने में सहायता दो या परोपकार करो । दैनिक जीवन में अहिंसा
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अहिंसा को मनसा वाचा कर्मणा दैनिक जीवन में अपनाना ही अहिंसा की साधना है। गृहस्थ जीवन तीन पुरुषार्थों में अर्थ तथा काम पुरुषार्थ, धर्म मूलक ही होते हैं और धर्म अहिंसा रूप ही होता है अर्थात् तीनों पुरुषार्थो में अहिंसा ही प्रधान तत्व है। अहिंसा का पालन करने के लिए अच्छे विचार, हितकारी सत्य प्रिय वचनों का प्रयोग और अच्छे कर्म (क्रिया) करना अति आवश्यक है । हिंसा, असत्य, चोरी (अपहरण), कुशील और परिग्रह (मोह) इन पाँच पाप कार्यों से तथा क्रोध, अभिमान, मायाचार, लोभ इन चार कुत्सित भावों से मानव आदि प्राणियों के दोनों लोको का विनाश होता है, निन्दा होती और असंख्य कष्ट होते है । अत: उन 5 पाप कार्यो का तथा चार कषाय विकारों का परित्याग करना आवश्यक है । अहिंसा की सिद्धि के लिए मैत्री भाव, प्रमोदभाव, करूणा भाव और माध्यस्थ (तटस्थ) भाव हृदय में धारण करना चाहिये ।
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