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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सारांश :- इस प्रकार ऋषभावतार होगा जो मेरे शंकर (शिवरूप) हैं, वह मानवों के लिए दीन बंधु रूप में नवमें अवतार होंगे। उनका स्तवन करो । यह वैदिक पुराण का प्रमाण है।
त्वंब्रह्मा परम ज्योतिस्त्वं प्रभूष्णुरजोऽरज: । त्वमादि देवो देवानां, अधिदेवो महेश्वरः ॥
(जिनसेनाचार्य: महापुराण -30 प.) तात्पर्य - हे वृषभदेव ! आप ब्रह्मा, परमज्योति, समर्थ, पापरहित, आदि देव (प्रथमतीर्थंकर), देवों के अधिदेव ओर महेश्वर (शिव) हैं। बौद्ध साहित्य में भगवान् ऋषभदेव:
बौद्ध ग्रन्थों में भी जैनधर्म के संस्थापक भ. ऋषभदेव का उल्लेख किया गया है। धम्मपद ग्रन्थ में ऋषभ और महावीर का उल्लेख है। 'आर्य मंजुश्री मूलकल्प' में भारत वर्ष के प्राचीनतम सम्राटों में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभ के पुत्र भरत को लिखा है। तथा ऋषभ ने हिमालय से सिद्धि प्राप्त की थी और वह जैन धर्म के आप्तदेव थे। न्यायबिन्दु अ.3 एवं 'सत्शास्त्र' आदि ग्रन्थों में भी भ. ऋषभ को जैन धर्म का आप्त पुरूष व्यक्त किया गया है। (अहिंसा वाणी : डा. कामताप्रसादः पृ.53)
उपसंहार :- सतयुग में ऋषभदेव तीर्थंकर का श्रेष्ठ अवतार, दुराचारियों के दुरा चार को, धर्म भ्रष्टजनों के पापको, अज्ञानियों के अज्ञान को दूरकर धर्मतीर्थ को प्रवर्तन करने के लिए हुआ था। इस गर्भ के बाद ऋषभदेव को पुन: गर्भ में नहीं आना है इसलिए गर्भकल्याणक, इस जन्म के पश्चात् पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त करना है इसलिए जन्मकल्याणक, राजपाट आदि वैभव, शरीर एवं विषय भोगों से विरक्त होकर तपस्वी हुए, इसलिए दीक्षा कल्याणक, कठोर तपस्या के द्वारा पूर्णज्ञान प्राप्त किया, अत: ज्ञान कल्याणक और शुक्ल ध्यान के माध्यम से कर्मो को विनष्टकर निर्वाण प्राप्त किया, इसलिए निर्वाण कल्याणक विश्व के कल्याणकारी थे। उन्होंने जनता को जीवन निर्वाह के षट्कर्म और जीवन शुद्धि के लिए षट्कर्तव्य, पुरूषों के लिए 72 कलाएँ
और महिला समाज के लिए 64 कलाओं को दर्शाया । वे ऋषभदेव कर्म युग के विधाता, प्रजा के प्रजापति, कलाओं के आविष्कारक, भ्रष्टों के पथ दर्शक, शाकाहार के आदर्श नेता, गणतंत्र के अधिनायक, अहिंसात्मक शासन के प्रशासक और कर्म भूमि के कर्मठ अधिष्ठाता हुए थे।
अहिंसा ध्वजगीत आदि ऋषभ के पुत्र भरत का भारत देश महान ऋषभदेव से महावीर तक करें सुमंगलगान। पंचरंग पाँचों परमेष्ठी, युग को दें आशीष, विश्वशान्ति के लिए झुकायें पावन ध्वज को शीष जिन की ध्वनि जैनमय संस्कृति, जन जन को वरदान, भारतदेश महान भारतराष्ट्र महान ॥ अहिंसा ध्वज की जय ॥
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