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________________ - व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ एक मनीषी विद्वान का व्यक्तित्व पं. अजित कुमार शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य शांति मोहल्ला दिल्ली जिस प्रकार इत्र की खुशबू अपने आप फैलती है उसी प्रकार एक ज्ञानवान, चारित्रवान विद्वान की ख्याति अपने आप पूरी दुनिया में फैलती है । डाक्टर पंडित श्री दयाचंद जी साहित्याचार्य लब्ध प्रतिष्ठित मूर्धन्य विद्वान थे आपका ज्ञान, शैली, वक्तृत्व कला अनोखी थी। मैंने अपने अध्ययन काल में पंडित जी का स्नेह प्रेम देखा है जब भी हम लोगों को कोई समस्या होती थी, आदरणीय पंडित जी साहब से बताते थे तो आप उस समस्या का समाधान तुरंत ही करते थे। आप इस युग के महान आध्यात्मिक विद्वान थे। आप चौबीसों घण्टे स्वाध्याय, मनन, चिंतन, ध्यान में अपना मन लगाते रहते थे आपने जीवन काल का एक मिनट भी व्यर्थ नहीं जाने दिया, चूँकि आप जानते थे कि दुनिया एवं जीवन पानी की बूंद के समान है इसलिए आपने न तो ज्यादा परिग्रह इकट्ठा किया, न ही ज्यादा मोह किया इसका उदाहारण हमारे सामने कु. किरण बहिन जी है जिन्होंने वैवाहिक बंधन में सुख न मानकर आत्मकल्याण तथा अपने पिताजी की सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत करना अच्छा समझा । इस भौतिकता के युग में आपने आत्मध्यान एवं ज्ञान के द्वारा जन जन को उपदेश देकर तथा प्रेरणा के साथ मार्गदर्शन दिया। आप इस युग के महान विद्वानों में एक थे। श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय रूपी वृक्ष को हरा भरा बने रहने में आपने जल सिंचित कर अपना पूर्ण सहयोग दिया। लगभग आपने 55 वर्षों तक विद्यालय की सेवा करके समाज पर एवं विद्यार्थियों पर बहुत बड़ा उपकार किया जिसको हम लोग तथा समाज युगों - युगों तक नहीं भूलेंगे विद्यार्थी मिट्टी के समान होता है लेकिन कुम्भकार उसको पीट - पीट कर जब अपने हाथ का सहारा लगाता है तथा उसको एक सुन्दर से मटका का रूप दें देता है उसी प्रकार आपने हम छोटे से विद्यार्थियों को शाम- दाम दण्ड भेद के द्वारा उस योग्य कर दिया कि आज हम कहीं भी रहें कभी समाज के सामने ज्ञान के विषय में झुकना नहीं पड़ता। आपके द्वारा लाखों विद्यार्थियों को ज्ञान, शिक्षा प्राप्त हुई जो अनेक उच्च पदों पर कार्यरत है तथा अनेकों समाज की सेवा कर रहे है । आप एक वात्सल्य की मूर्ति थे जो भी आपके सानिध्य में रहा है उसको सही दिशा देने में आप अग्रसर रहते थे।आपको समाज के द्वारा अनेक पुरुस्कारों से विभूषित किया गया तथा समाज के द्वारा भी आपको अनेकों पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया । यह आपके ज्ञान का सम्मान था अनेकों साधुओं को आपने गुरु बनकर अध्ययन कराया तथा उनको मोक्ष मार्ग पर चलने में अपना सराहनीय सहयोग दिया। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से “जैन पूजा काव्य" के महत्व पर आपने शोध कार्य करके डाक्टरेड उपाधि प्राप्त की है। यह भी समाज के ऊपर बहुत बड़ा उपकार है तथा अपने आप में एक गौरव का विषय है । हम लोगों को आपका मार्गदर्शन जीवन भर याद रहेगा तथा हम लोग आपके ऋणी रहेंगे जब तक हम लोगों का जीवन है आपकी गौरवगाथा गाते रहेंगे । आज जहाँ भी हो जिस गति में हो हम लोगों को आशीर्वाद देते रहेंगे । हम सभी सदगति की कामना करते है। (115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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