SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मैंने संस्कृत विद्यालय सागर में सन 1971 में अध्ययन हेतु प्रवेश लिया था। तथा सन् 1982 तक विद्यालय में रहा । पूज्य पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य जी का सानिध्य मुझे 11 वर्ष तक अध्ययन करने का प्राप्त हुआ मेरे अध्ययन काल में मेरे तीनों गुरु रत्नत्रय के समान थे। डॉ. पंडित पन्नालाल जी, पं. माणिकचंद जी एवं डॉ. पंडित दयाचंद साहित्याचार्य ये तीनों श्रद्धेय पूज्य मेरे गुरु रहे है। संस्मरण - __पंडित जी छात्रों को जितना स्नेह करते थे उतना डांटते भी थे। पंडित जी को हम लोग स्नेह से बड़े शास्त्री : हा करते थे। तथा पंडित धरमचंद जी उस समय के छोटे शास्त्री थे। पूज्य पंडित दयाचंद जी की पिटाई उस समय जगत प्रसिद्ध थी। पंडित जी की पिटाई से अनगिनत छात्रों की जिन्दगी सुधर गई, ऐसी मेरी मान्यता है। जब मैं पूर्व मध्यमा प्र. खण्ड में अध्ययन करता था, पंडित जी हमारे कक्षा शिक्षक थे। कक्षा में किसी छात्र ने डेक्स गिरा दिया, पंडित जी ने डंडा लेकर पूछा किसने गिराया है, उसने मेरे तरफ इशारा कर दिया पंडित जी ने मेरी पिटाई प्रारंभ कर दी। मैंने बहुत कहा कि मैंने नहीं गिराया फिर भी पंडित जी पीटते रहे जब शांत हुए तब छात्रों ने कहा पंडित जी डेक्स तो किसी दूसरे ने गिराया था आपने इसको पीट दिया तो पंडिा जी बोले आपने पहले क्यों नहीं बताया मैंने कहा वही तो कह रहा था परन्तु आपने सुना ही नहीं तो पंडित जी को बहुत पछतावा हुआ पंडित जी किसी की छोटी सी भी गलती सहन नहीं करते थे। उनका अनुशासन कड़ा था हम लोग उस समय इन सब बातों को हँसी में निकाल देते थे परन्तु आज एक एक पंडित जी की बात याद आती है। ऐसे पूज्य गुरुवर्य पं. डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य जी के चरणों में अपने हृदय से विनम्र श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ। पं. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य - विद्यार्थियों के मसीहा (व्यक्तित्व कृतित्व) __ पं. राजकुमार जैन शास्त्री,ग्रामीण बैंक मकरोनिया, सागर (म.प्र.) भारत वसुन्धरा में श्रेष्ठ व्यक्तित्व की हमेशा पूजा हुई है। यह भारत भूमि की श्रेष्ठतम विशेषता है। भारत देश वह देश है जहाँ विद्वान मनीषी, साहित्यकार, वैज्ञानिक,कवि, लेखक, गायक जैसे प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान हुआ। भारत देश के अंचल बुंदेलखण्ड की पवित्र माटी में सागर की शाहपुर की भूमि में एक बालक ने जन्म लिया। जैसी कहावत है पूत के लक्षण पालने में दिखने लगते है सो हुआ भी ऐसा ही पूत सपूत होतो सोने में सुगंधी बिखेर देता है । बालक जन्म से ही आज्ञाकारी एवं दयालु (104 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy