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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ तथा तत्वचर्चा किया करते थे एवं मिलकर माता-पिता की सेवा किया करते थे। उनका भ्रातृ-प्रेम एक मिसाल थी जिसे समाज के सभी प्रबुद्ध जन जानते थे। मेरे पिता जी प्रशासनिक दृष्टि से कुछ तेज थे लेकिन मेरे काका जी पं. दयाचंद जी अत्यंत सरल स्वभावी एवं दया. थे उनको मैंने कभी किसी को डाटते, फटकारते या गुस्सा करते नहीं देखा । उनका ऐसा एक आदर्श था। मेरे पूज्य बब्बा जी ने जब पांचों भाईयों में सम्पत्ति का बटवारा किया तो किसी ने कोई शब्द नहीं बोला। उन्होंने जैसा किया वैसा ही स्वीकार कर लिया। मैंने पांचों भाईयों में कभी कोई विवादास्पद प्रसंग या चर्चा नहीं देखी। वे आपस में इतने समर्पित थे कि हमेशा सहयोग के लिए तैयार रहते थे। वे परस्पर एक दूसरे की मान-मार्यादा एवं सम्मान का पूरा ध्यान रखते थे। पारिवारिक मामलों में सभी ने अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों को नि:स्वार्थ भाव से पूर्ण किया। उनके ये आदर्श गुण सभी के लिए अनुकरणीय है। महनीय व्यक्तित्व व कृतित्व के धनी : डॉ. दयाचंद जी पंडित सुनील जैन संचय शास्त्री, जैन दर्शनाचार्य, नरवाँ जिला-सागर 11 अगस्त 1915 को शाहपुर (मगरोन में जन्मे) साहित्य मनीषी, सरस्वती के वरद पुत्र संस्कृत, प्राकृत एवं जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान आदरणीय पंडित डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य से कई बार मुझे वार्तालाप करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से संचालित श्रुत संवर्धन शिविरों के आप संरक्षक रहे हैं, इसकी स्वीकृति आपने मुझे प्रत्यक्ष प्रदान की थी। मुझे याद है जब शिविरों के समापन समारोह - 2001 में पंडित श्री को शाहगढ़ समापन समारोह हेतु आमंत्रित करने गया तो उन्होंने हमें जो स्नेह और वात्सल्य दिया वह सदैव याद रहेगा। आपकी श्लथकाय को देखते हुए मैंने पंडित जी से कहा समारोह के दिन में किसी को लेने भेज दूंगा | पंडित जी ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया तुम परेशान मत हो, तुम्हें बहुत कार्य देखना है । मैं सागर से आने वाले अन्य महानुभाव श्री जीवन सिंघई (क्षमासागर जी के गृहस्थ अवस्था के पिता श्री), गुलाबचंद जी पटना (दृढ़मती माता जी के गृहस्थ अवस्था के पिता श्री), बालक सिंघई आदि के साथ पहुँच जाऊँगा । आदरणीय पंडित जी का उत्तर सुनकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ । आदरणीय पंडित जी ने उक्त कार्यक्रम में शाहगढ़ पहुँच कर समारोह की गरिमा बढ़ायी थी। उसके बाद जब तब आदरणीय पंडित जी की कर्मभूमि, शिक्षाभूमि गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय मोराजी प्रांगण के उनके निवास पर जाकर परामर्श लेता रहा, उनका आदर्श सादगी (95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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