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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ महाविद्यालय ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में निर्वाचित हुआ। अत: बैठकों में प्राचार्य जी को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है, तब उनकी कुशलता एवं प्रबंध व्यवस्था को अधिक निकटता से देखा, परखा। आप 1995 में स्व. पं. मुन्नालाल जी रांधेलिया न्यायतीर्थं वर्णी के स्मृति ग्रन्थ के प्रधान संपादक निर्वाचित हुए जिसका मुझे संयोजक संपादक बनाया गया था। तब समय - समय पर आपके पास जाना होता था वे घर भी पधारते थे और संपादक मंडल की बैठकों में तो अनिवार्य रूप से । उनका मार्गदर्शन अनुभव, प्रेरणा सदैव आशावादी, उत्साहवर्धक हम सभी को रही। 3 मई 1998 को उस ग्रंथ का लोकार्पण संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पवित्र सानिध्य एवं आशीर्वाद से सागर भाग्योदय तीर्थं में संपन्न हो रहे श्री गौराबाई दि. जैन मंदिर, के पंच कल्याणक के शुभ अवसर पर भव्य समारोह के साथ संपन्न हुआ था । अंत मैं उनके कुछ विलक्षण सद्गुणों की चर्चा संक्षेप में करके अपनी लघु विनयांजलि की इति श्री कर रहा हूँ । प्रथम यह कि मैं महाविद्यालय का ट्रस्टी था और जब भी उनके निवास पर सौजन्य भेंट हेतु पहुँचा उन्होंने मुझे सम्मानपूर्वक (13 वर्ष छोटा था आयु में) कुर्सी प्रदान की, पर उनको गुरु मानते हुए कभी भी उनके सामने कुर्सी ग्रहण नहीं की बेंच पर ही बैठा । द्वितीय वे चर्चा शालीन एवं गरिमापूर्ण ही करते थे, पर निंदा से बचते थे। तृतीय विशेषता थी कि यथाशक्ति सभी को विनम्र भाव से सहयोग प्रदान करते थे। उनकी पुण्य स्मृति को शत् शत् नमन वंदन । डॉ. पं. श्री दयाचंद जी साहित्याचार्य भ्रातृत्व गुण की एक मिसाल थे। नेमिचंद्र जैन, भू.पू. महाप्रबंधक, भोपाल पुत्र स्व. पं. श्री माणिकचंद जी जैन दर्शनाचार्य सप्तम प्रतिमाधारी आध्यात्मिक पंडित श्री भगवानदास जी भायजी संगीतरत्न. ग्राम शाहपुर जिला सागर के निवासी थे, उनके पाँच पुत्र थे। जिस प्रकार पाण्डु के पाँच पुत्र, पाँच पाण्डव के नाम से विख्यात हुए, उसी प्रकार पंडित भायजी के पाँच पुत्र, पाँच विद्वान हुए। ___ मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है जो मेरे पूज्य पिता जी पं. श्री माणिकचंद जी ने बताया था। जब परम पूज्य श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी ने सागर में लौकिक एवं धार्मिक शिक्षा हेतु संस्कृत विद्यालय की स्थापना की तो प्रारंभ करने के लिए सबसे पहले पढ़ाने हेतु पंडित/विद्वान की व्यवस्था के लिये समस्या का सामना (93) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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