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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सभी परीक्षार्थियों के आ जाने के बाद जा सकते हैं। ऐसा करने से 15-20 मिनिट देर से आप दूसरे परीक्षा केन्द्र पर पहुंच जाएगें। यह आप लोगों के धैर्य और कुशाग्रबुद्धि की भी परीक्षा का समय आया है।
संभवत: शास्त्री प्रथम वर्ष (11वीं) की बात हैं । छह बजे के बाद भी एक दो उदंड लड़के सोते रहते थे। एक दिन निरीक्षण के मध्य शैलेश नाम का (आठवीं कक्षा का ) विद्यार्थी सोता मिला | मैंने जगाया। उसने कुछ ध्यान नहीं दिया । मुझे गुस्सा आया तो मैंने उसे कान पकड़कर खड़ा कर दिया और दो तीन तमांचे जड़ दिए । वह रोता हुआ पंडित जी के पास पहुंचा और मेरी शिकायत कर दी।
___पंडित जी ने तुरंत तो कुछ नहीं कहा, दोपहर को लगभग दो बजे बुलाया। मैं समझ गया कि आज अपनी भी डण्डों से पूजा होने वाली है। मैं गया और चरण छूकर खड़ा हो गया। उन्होंने सिर्फ एक नजर देखा
और बोले मुझे तुमसे यह आशा नहीं थी, छोटे विद्यार्थी, छोटे भाई के समान होते हैं। और वे चुप हो गए। उसके बाद मैंने शायद ही किसी पर हाथ उठाया हो ।
यह तो सिर्फ उनकी करूणा के संस्मरण हैं। मुझे तो ऐसे कई संस्मरण स्मरण में है। उनकी इच्छा थी कि मैं संस्कृत शास्त्री तक संपूर्ण पढ़ाई करूँ, फिर चाहे दीक्षा ले लूँ। किंतु वैराग्य की उत्कृष्टता वश मैं उनकी बात नहीं मान पाया फिर भी उनके द्वारा दिए गए ज्ञान व संस्कारों के बल पर मैं मोक्षमार्गस्थ हूँ।
पंडित जी निश्चित ही कुछ भवों में आत्मलाभ करेंगे, ऐसी मंगल भावना के साथ।
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