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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मोराजी का चांद इक चांद देखा तो नजर दाग आया। मोराजी का चांद तो वेदाग पाया ॥
शीतल चाँद तारे तो रात को चमकते ।
गुरु दया चंद्र जी तो हमेशा दमकते ॥ तेरे चरणों में ये राग गाया मोराजी का चाँद तो वेदाग पाया ...
पारस को छूकर, बनता लोहा कुन्दन ।
हमें छूकर गुरुवर तुमने बनाया है चंदन ।। तेरे चरणों वंदनकर, भाग्य जगाया मोराजी का चांद तो वेदाग पाया ...
करूणा दया क्षमा, रही जिनके अंदर ।
ऐसे मेरे गुरुवर ज्ञान के समुन्दर । करूणा का पाठ गुरु ने हमें भी पढ़ाया। मोराजी का चांद तो वेदाग पाया ...
गुरुवर का आशीष जब से मिला है।
"भारती" के मन में कमल सा खिला है । गुरुवर का शिष्य बनकर सदा मुस्कराया मोराजी का चांद तो वेदाग पाया... चरणरज - पं.अखिलेश कुमार जैन "भारती' शास्त्री
मु. रमगढ़ा पो. कारी टोरन
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