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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ नई व्यवस्था दी गुरुवर ने, पढ़ने की अभिराम । सात छात्र मिलकर पदो, नहीं रटने का काम ॥ पठन - मन - अभ्यास कर, नित्य सुबह अरू शाम । आपस में पूंछो सभी, नहीं शर्म का काम ||4|| दयानिधि पन्ना - माणिक - पारखी, दयानिधि दयाचंद। पद - रज पाकर के हुआ, जग - जन - जीवन धन्य ॥ ग्रन्थ पठन का सार है, बन संयम का धाम | गन्दी नाली का 'सुअर', मत बन आठों याम ॥5॥ दयानिधि अटके, भटके, सटके जन को, बने तुम्हीं दिग्यंत्र । 'राग - आग का त्यागकर' - दिया मोक्ष का मंत्र ॥ सौम्यमूर्ति, समताधनी, हो करूणा के धाम । गर्व न जिनको छू सका, सदा सरल परिणाम ॥6॥ दयानिधि सतत साधना का प्रतिफल, या है संचित पुण्य । छांव मिली गुरुदेव की, रूक रूक हुआ प्रसन्न ॥ धौम्य, कौत्स, आचार्य द्रोण से, आगे गुरु का काम । ध्रुव सम इस धरणी पर चमके, युगों युगों तक नाम ॥7॥ दयानिधि प्रभु पूजा कर पूज्य बनो - खुद, काट कर्म के बंध। जिन पूजा के बने डॉक्टर, लिखकर शोध प्रबंध ॥ जिनवाणी को मथ-मथ, जिनने भगा दिया अज्ञान । अन्त समय तक रहे समर्पित मिले बहुत सम्मान ।।8।। दयानिधि गुरुदेव तुम्ही जीवन मेरे, तुम ही मेरे अर्जित धन। मुरझे हुए सुमन में तुमने, उड़ेल दिया जब अंतर्मन ॥ महक गयी है कली कली, अब बगिया की मैं शान । भूल सकूँगा नहीं कभी मैं , गुरुवर का एहसान ||9।। दयानिधि कहाँ छिपे गुरुदेव तुम ! सफल करोमम काज । आगे - आगे तुम चलों, अरज करूं मैं आज ॥ वरण हस्त मुझ पर रखो, ऐसा मम अरमान । तुम बिन जीवन हो रहा, व्यर्थ और निष्प्राण ॥10॥ दयानिधि
गुरूचरणार विन्द चंचरीक
आनंद कुमार जैन दर्शनाचार्य, शिक्षक जैन बहु उ.मा.वि. सागर (म.प्र.)
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