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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इन्द्र प्रस्थ दिल्ली में भी धर्म दिवाकर से चमकाया । गणिनी ज्ञान मति माता जी से भूषण बनकर छाया ।। श्रुत संवर्धन पुरस्कार से शोभित पाई ख्याति महान है । महावीर मुक्तक चर्तुविंशति संधान से चमक उठा नाम है ॥5॥
श्री वर्णी परिचय, स्याद्वाद लिख दयाचंद चमकाये । अमर भारती त्रय भाग को लिखकर भू मण्डल महकाये ॥ भद्र परिणामी दया ज्ञान की ज्योति बनकर छाये । नश्वर देह ममत्व त्यागकर वीतराग का ध्याग लगाये ।। रत्नत्रय पावन गंगा में आत्मचिंतन कर काम है । वीतराग वाणी का पथ ले करता "फणीश''प्रणाम है ।।6।।
बाबूलाल फणीश शास्त्री पावागिरि (ऊन) म.प्र.
श्रद्धेय डॉ. पं. स्व. श्री दयाचंद जैन, साहित्याचार्य, के दिवंगत चरणों में सादर समर्पित
श्रद्धा सुमन जगह - जगह जगती पर जिनने, किये अलौकिक काम । दयानिधि उन दयाचंद को, करते कोटि प्रणाम ॥टेक॥ पग-पत्थर को देवत्व दिया, खुद की दी पहचान । निज - शक्ति का बोध कराया, किया पतित उत्थान ॥
सब में शक्ति छिपी पड़ी है, बन सकते भगवान । प्रमाद छोड़ पुरुषार्थ करो, नाही कोई कुहराम ||1|| दयानिधि संघर्षों में जीना सीखो, दिया नित्य उपदेश । कल का अरे भरोसा क्या है कार्य रखो न शेष ।। बिगड़े काम बनाओ सबके, मत देखों अंजाम । पथ - बाधा से मत घबराओ था, गुरवर पैगाम ।।2।। दयानिधि दया धर्म पालो सदा, नहीं करो अभिमान | शास्त्र पढ़ो जिनदेव का, गुरु - निग्रंथ महान ॥ परनिंदा अरू झूठ तज, आत्म प्रशंसा नादान । सप्त व्यसन का त्यागकर करो आत्म, कल्याण ॥3॥ दयानिधि
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