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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मेरे आदर्श गुरु पूज्य पंडित जी पं.मनोज कुमार शास्त्री श्री वर्णीभवन, मोराजी, सागर परम आदरणीय “सादा जीवन उच्च विचार" की प्रतिमूर्ति थे आदर्श विद्वान, क्षमा एवं सहिष्णुता के धनी डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य प्राचार्य गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय के गौरव हमारे आदर्श गुरु एवं मार्गदृष्टा रहे हैं। परम आदरणीय पं. जी के जीवन में सदा ही छात्रों के हित की भावना रही है, वह अपने छात्रों के लिए ऊपर से कठोर एवं अंदर से बहुत ही दयालु थे। अध्यापन कराना एवं छात्रों से पाठ को सुनना उनकी अह्म भूमिका थी अत: वह यह भी जानते थे कि किस छात्र में क्या योग्यता है इसलिए वह अध्यापन के समय छात्रों का आत्मविश्वास बढ़ाते हुए सदा ही कहते थे कि यहाँ पर हम आपको मसाला देते है और यही अध्ययन तुम्हारे व्यक्तित्व में भी झलकेगा । तो आप भी महान बन सकते है। शिक्षण के समय आदर्श शिक्षक की तरह दिखाई देते थे और बाकी समय में इस प्रकार का स्नेह रखते थे कि प्रत्येक छात्र के परिवार से संबंधित जानकारी लेते थे। तथा छात्रों को उचित मार्गदर्शन देकर उनकी सहायता करवाते एवं करते भी थे। परम आदरणीय पंडित जी की दिनचर्या भी एक आदर्श थी, अपने जीवन में षट् आवश्यकों का पालन करना उनका कर्तव्य था। देव पूजा गुरुपास्ति, स्वाध्याय संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थाणां, षट् कर्माणिदिने-दिने । अर्थात् देव पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, त्याग (दान) आदि पंडित जी ने अपने जीवन में इनका पालन सदैव ही किया है । देव -पूजन करना आपका प्रथम कर्तव्य था, अत: हम सभी आपको अंत समय तक देवाधिदेव अरहंत देव की पूजन करते हुए देखते रहे है । आप कहते थे कि जो भी बिना चाहना के भगवान की पूजा करेगा, वह सदैव ही अपने जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर होगा एवं अपने जीवन का कल्याण भी करेगा। ___ मैंने भी पंडित जी को आदर्श मानकर सदा ही देव पूजन करना स्वीकार किया था, अत: पंडित जी एक आदर्श प्राचार्य रहे, साथ में कुशल विद्वान, आदर्श लेखक, समयनिष्ठ, सरल स्वभावी, स्वाभिमानी एवं उच्च विचारों के धनी थे। विपत्तियों के समय भी पंडित जी को हम सभी ने कभी भी निराश होते नहीं देखा । अंत समय में पंडित जी पूर्ण सचेत थे तथा बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर धार्मिक वातावरण के समय महामंत्र णमोकार मंत्र का ध्यान करते हुए सचेतावस्था में आपका देहावसान हुआ। _ निश्चित आपको परम गति की प्राप्ति हुई होगी, आज हमारे बीच में आप नहीं है फिर भी आपके आदर्श एवं आपके द्वारा प्रदत्त शिक्षण को हम सभी याद करते हुए आपको ही साक्षात मानकर सदैव ही आपको स्मरण करेंगे। (56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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