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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त पता नहीं चलता, उसी प्रकार आचार-शून्य ज्ञानी केवल ज्ञान का भार ढोता है, उसे मुक्ति नहीं मिल सकती। कवि ने क्रियाहीन ज्ञान को विकलांग की उपमा देते हुए उसे निरर्थक कहा है - पांगलउ ज्ञान किस्यउ कामरउ, ज्ञान सहित क्रिया आदरउ। समयसुन्दर द्यइ उपदेश चारउ, मुगति तणउ मारग पाधरउ। इसी गीत में कतिपय प्रेरक पंक्तियाँ आचार-निष्ठ बनने के लिए प्रेरणा देती हैं - क्रिया करउ, चेला किया करउ, क्रिया करउ जिम तुम्ह निस्तरउ॥ पडिलेहउ उपग्रण पातरउ, जयणा सुं काजउ ऊधरउ । पड़िकमता पाठ सुध उचरउ, सहु अधिकारग मा सांभरउ। काउसग्ग करता मन पांतरउ, चार आंगुल पग नउ आंतरउ । परमाद नइ आलस परिहरउ, तिरिय निगोद पडण थी डरउ। क्रियावंत दीसइ फूटरउ, क्रिया उपाय किस्यउ कामरउ । कवि ने ज्ञान की उपासना के साथ-साथ आचार का भी निष्ठापूर्वक पालन किया।दुष्काल की परिस्थिति में हुई चारित्रिक स्खलनाओं को वे लिखित रूप में स्वीकार करते हुए कहते हैं कि मैंने काल के प्रभाव में आकर अनाचीर्ण कार्य किए हैं। अपनी गलती को गलती रूप मानना और उसके लिए अन्तरात्मा से पश्चाताप करना उनके आत्म प्रवंचना से रहित आचार में सत्य-निष्ठ होने का प्रबल प्रमाण है। इसीलिए कवि ने क्रियोद्धार करके स्वयं अपनी आचारनिष्ठता का परिचय दिया। १६.६ साहित्य-सेवा- कवि जैन श्रमण थे। जैन श्रमण के कारण आत्म-कल्याण तथा मोक्ष-प्राप्ति ही उनके जीवन का लक्ष्य था, तथापि वे आत्मोद्धार में जितने सजग थे, उतने ही साहित्य-सेवा में भी। उनकी सभी गद्यात्मक और पद्यात्मक रचनाएँ वस्तुतः ज्ञानराशि का एक विशाल भण्डार है, जो न केवल मनुष्य को एक नवीन दृष्टि देता है, अपितु उसे जीवन-सम्बन्धी सत्यों का परिज्ञान कराता है। उनकी साहित्य-सृष्टि काव्य-कला की दृष्टि से अनुपम है। रसिकजन उसका आस्वादन कर विशेष आनन्द का अनुभव करते हैं। कवि समयसुन्दर के साहित्य में उदात्त भावनाओं एवं गूढ़ विषयों का सुन्दर रूप से व्यवस्थित विवेचन हआ है। कवि भी साहित्य-सेवा महान् है। कवि की शताधिक कृतियाँ और सहस्राधिक फुटकर पद उपलब्ध हैं। वे कलम के धनी थे। उनकी लेखनी से ही उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा, प्रज्ञा-प्रकर्षता तथा उनके पाण्डित्य का परिचय प्राप्त होता है। उन्होंने साहित्य-सेवा के द्वारा अनेक मौलिक रचनाएँ और टीकाएँ लिखकर मध्यकालीन साहित्य को समृद्ध किया है। कवि की अपरिमित एवं अनुपमेय साहित्य१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, क्रिया-प्रेरणा-गीतम्, पृष्ठ ४३८ २. वही, क्रिया-प्रेरणा-गीतम्, पृष्ठ ४३७-४३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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