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ग्रन्थ प्रकाशन की अपेक्षा रखते हैं, किन्तु जहाँ तक उनका अनुसंधानपरक दृष्टि से अध्ययन करने का प्रश्न है, अनेक विद्वानों ने इसके लिए प्रयास किया है। इस क्षेत्र में यदि किसी ने सर्वप्रथम उल्लेखनीय कार्य किया, तो वह जैन साहित्य के महारथी मोहनलाल दलीचन्द देसाई हैं। उन्होंने भावनगर (गुजरात) में आयोजित सप्तम गुजराती साहित्य परिषद् में 'कविवर समयसुन्दर' नामक अपने विस्तृत शोधनिबन्ध का पठन किया था। तत्पश्चात् प्रसिद्ध साहित्यकार श्री अगरचन्द नाहटा एवं श्री भंवरलाल नाहटा का इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। नाहटा-बन्धुओं को तो उनके शैशव-काल से ही कवि समयसुन्दर की रचनाओं का माधुर्य प्राप्त होता रहा। समयसुन्दर की रचनाएँ उनके लिए मातृदुग्ध के समान थीं। समयसुन्दर की लगभग ५०० फुटकर रचनाओं को सुसम्पादित एवं प्रकाशित कर, शोधकर्ताओं को उन्होंने अच्छी सामग्री प्रदान की। कवि समयसुन्दर की कतिपय वृहत् रचनाओं पर भी उनका कार्य स्तुत्य है।
महोपाध्याय विनयसागर ने कविवर समयसुन्दर के साहित्य के लगभग सभी अंगों पर नवीन अध्ययन प्रस्तुत किया है। यद्यपि उनका प्रस्तुतिकरण अतिसंक्षिप्त है, तथापि उन्होंने जितना किया है, वह अपने आप में इस प्रकार का सर्वप्रथम प्रयास होने के कारण अभिनन्दनीय है।
समयसुन्दर के साहित्य पर आज तक हुए शोधमूलक अध्ययनों में डॉ.सत्यनारायण स्वामी का 'महाकवि समयसुन्दर और उनकी राजस्थानी रचनाएँ' नामक शोध-प्रबन्ध उल्लेखनीय है। इसमें कविवर समयसुन्दर के जीवन-चरित्र एवं भाषा-साहित्य का आकलन करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि डॉ. स्वामी ने समयसुन्दर की राजस्थानी रचनाओं के संदर्भ में श्लाघ्य प्रयास किया है, परन्तु मैंने जब उनके शोधप्रबन्ध का अवलोकन किया, तो मुझे लगा कि अभी तक भी समयसुन्दर के भाषा-साहित्य पर शोध की अपेक्षा है। इसके अतिरिक्त समयसुन्दर का संस्कृत-साहित्य तो अभी तक अछूता ही रहा। समयसुन्दर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का बहिरंग अवश्य प्रकाशित हुआ, किन्तु अन्तरंग अस्पष्ट ही पड़ा रहा। इस प्रकार महोपाध्याय समयसुन्दर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के गवेषणात्मक दृष्टि से अध्ययन की आवश्यकता व्यापक रूप से अभी भी बनी हुई थी। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी दिशा में एक प्रयास है।
शोधकार्य प्रारम्भ करने से पूर्व यद्यपि मैंने महोपाध्याय समयसुन्दर के मौलिक एवं व्याख्यात्मक संस्कृत-साहित्य का विषय चुना, किन्तु बाद में विचार आया कि क्यों न समयसुन्दर के सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व को ही अध्ययन का विषय बनाया जाय, ताकि अन्य क्षेत्रों में रही अपूर्णता को भी पूर्ण करने का प्रयास किया जा सके। अतः 'महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' - यह विषय निर्धारित कर मैंने मनोयोगपूर्वक शोध-कार्य शुरू किया।
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