________________
समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
निरकार ते तुंही तुंही, साकार पणि ते तुंही तुंही । निरंजण ते तुंही तुंही, दुख भंजण ते तुंही तुंही । अलख गति ते तुंही तुंही, अकल मति ते तुंही तुंही । एक रूपी ते तुंही तुंही, बहुय रूपी ते तुंही तुंही । घट-घट भेदी तुंही तुंही, अंतरजामी तुंही तुंही । जगतव्यापी तुंही तुंही, तेज प्रतापी तुंही तुंही । पापीया दूरि ते तुंही तुंही, धरमी हजूरी ते तुंही तुंही । अंतर्जामी तुंही तुंही, सहसनामी तुंही तुंही ।
एक अरिहंत तुंही तुंही, समयसुन्दर तुंही तुंही ।
परन्तु एक गीत में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि उसके आराध्य मात्र जिनेन्द्र ही हैं। उसने हरि, हर, राम की उपेक्षा कर केवल उन्हीं से मुक्ति की याचना की है वीनति एक करुं मोरा स्वाम, द्यो मोहि मुगतिपुरी को धाम । किसके हरि हर किसके राम, समयसुन्दर कहे जिन गुण ग्राम ॥ २
और भी -
--
अलख अगोचर तू परमेसर, अजर अमर तूं अरिहंत जी । अकल अचल अकलंक अतुल बल, केवलज्ञान निरखंत जी ॥ निराकार निरंजन निरुपम, ज्योतिरूप निरखंत जी । तेरा सरूप तूंही प्रभु जाणइ, के जोगीन्द्र लहंत जी ॥ ४ कारण, वास्तविकता तो यह है
हरि हरादिक देव तणी घणी, भगति कीधी मुक्ति गमन भणी । नवि फलइ जिम जल सिंचावियउ, उखर खेत्रइ ओदन वावियउ ॥ ३ समयसुन्दर ने अपने आराध्य के स्वरूप-निरूपण का प्रयास किया है, लेकिन
साथ में उन्होंने यह भी कहा है कि उसके स्वरूप को या तो प्रभु ही जानता है या फिर कोई योगीन्द्र -
-
प्रभु तेरे गुण अनन्त अपार ।
सहस रसना करत सुरगुरु, कहत न आवे पार ॥ कोण अम्बर गिणै तारा, मेरु गिरी को भार । चरम सागर लहरि माल, करत कोण विचार ॥
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजजि, श्री परमेश्वर - भेद-गीतम्, पृष्ठ ४४४
२. वही, चौबीसी, कुन्थुजिनस्तवन, पृष्ठ ११
३. वही, श्री पार्श्वजिन दृष्टान्तमय लघु स्तवन, पृष्ठ २०१
४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, चौबीसी धर्मजिनस्तवन, पृष्ठ १०
Jain Education International
५३
For Private & Personal Use Only
-
www.jainelibrary.org