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________________ ५० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तीर्थ-स्थलों में कवि का मन-मयूर नाच उठता था। विमलगिरि (शत्रुजय) तीर्थ के प्रति वे विशेष मोहित थे। प्रस्तुत है निम्नलिखित पंक्तियों में इस तीर्थ के प्रति भक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचाती हुई उनकी व्यक्त अन्तर्भावनाएँ - क्यों न भये हम मोर विमलगिरि, क्यों न भये हम मोर ॥ क्यों न भये हम शीतल पानी, सींचत तरुवर छोर। अहनिश जिनजी के अंग पखालत, तोड़त करम कठोर ॥ क्यों न भये हम बावन चंदन, और केसर की छोर। क्यों न भये हम मोगरा मालती, रहते जिनजी के मौर॥ क्यों न भये हम मृदंग झालरिया, करत मधुर ध्वनि धोर। " जिनजी के आगल नृत्य सुहावत, पावत शिवपुर ठौर ॥१ समयसुन्दर की भक्ति-भावना यद्यपि सभी जिनेन्द्रों के प्रति थी, किन्तु ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर और सीमन्धर-स्वामी तो उनके हृदय-मंदिर में प्रतिष्ठापित ही थे। वे अपने को द्विज-मीत (सुदामा) बताकर भगवान् महावीर से याचना करते हैं - ए महावीर मो कछु देहि दानं, हूं द्विज-मीत तूं दाता प्रधान। . जब कवि के हृदय से भक्ति-स्तोत्र फूटता है, तो वे कहीं पर पंख न होने के कारण अपने आराध्य तक न पहुँच सकने की शिकायत करते हैं और अपनी विवशता दर्शाते हैं, तो कहीं स्वयं न पहुँच सकने की वेदना व्यक्त करते हुए परमात्मा को स्वप्न में दर्शन देने की प्रार्थना करते हैं और कहीं चन्द्र आदि के द्वारा अपना भीतरी सन्देश प्रेषित करते हैं। इसी सम्बन्ध में प्रस्तुत है, सीमन्धर स्वामी के प्रति उनके उद्गार -- चांदलिया संदेसड़ो जी, कहजे सीमन्धर स्वाम। भरतक्षेत्र ना मानवी जी, नित उठ करइ रे प्रणाम ॥ राय ने व्हाला घोड़ला जी, वेपारी ने व्हाला छै दाम। अम्ह ने व्हाला सीमंधर स्वामी, जिम सीता ने राम॥ नहीं मांगूंप्रभु राज-ऋद्धि जी, नहीं मांगू ग्रन्थ-भंडार। हूं मांगूं प्रभू एतलो जी, तुम पासे अवतार ॥ देव न दीधी पांखड़ी जी, किम करि आq हजूर । मुजरो म्हारौ मानजो जी, प्रह उगमते सूर ॥३ समयसुन्दर की दर्शनाभीप्सा एवं आत्मोद्धार की उत्कण्ठा अति तीव्र थी। कुछ पंक्तियां और प्रस्तुत हैं, जिनसे उनके आन्तरिक व्यक्तित्व एवं भक्ति का बोध होता है। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, विमलाचल मण्डन आदि-जिनस्तवन, पृष्ठ ७७ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, चौबीसी, वीर-जिनस्तवन, पृष्ठ १४ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजजि, श्री सीमंधरजिनस्तवन, (२,६-९), पृष्ठ ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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