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________________ ३८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हाल कवि ने विशेषशतक की प्रशस्ति में, चम्पक- श्रेष्ठि- चौपाई में संक्षिप्त और 'सत्यासिया दुष्काल- छत्तीसी २ में विस्तृत रूप में वर्णित किया है, जिसका पठन रोम-रोम में कम्पन उत्पन्न कर देता है। ऐसा अनुभव होता है जैसे इस दुष्काल में हम भी भुक्त भोगी हैं। 'नवतत्ववृत्ति'३ से जानकारी मिलती है कि वि० सं० १६८८ का वर्षावास कवि ने अहमदाबाद में समाप्त किया । 'स्थुलिभद्र - सज्झाय ४ नामक रचना कवि ने वि० सं० १६८९ में अहमदाबाद में ही रची थी। इसका तात्पर्य यह है कि उन्होंने दूसरा वर्षायोग भी वहीं पर व्यतीत किया । वि० सं० १६९० में वे खंभात गए । सरस्वती की अनुकम्पा से उन्होंने 'प्रस्ताव - सवैया - छत्तीसी" और 'खरतरगच्छ - पट्टावली ६ की रचना की । प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर परिज्ञात होता है कि कवि ने आगामी चातुर्मास खंभात के समीप खारवापाड़ा नामक स्थान में किया था । वहाँ उन्होंने 'आहार सैंतालीस दोस - सज्झाय ७ तथा— दशवैकालिक-सूत्र- वृत्ति" का निर्माण किया । वहाँ पर ' थावच्चासुत - ऋषि - चौपाई ९ की रचना की, जो इनकी कवित्वशक्ति की प्रौढ़ता का उदाहरण है । वि० सं० १६९२ में भी ये खंभात में रहे और वैशाख माह में रघुवंश महाकाव्य पर 'अर्थलापनिका - वृत्ति १० बनाई । 'विहरमान वीसी स्तवना ११ के अनुसार वि० सं० १६९३ में कविवर विचरण करते हुए अहमदाबाद पहुँचे । वर्षावास यहीं पर व्यतीत किया, ऐसा संकेत उक्त रचना से प्राप्त होता है । कविववर पदयात्री थे। वायु की भांति अप्रतिबद्ध विहारी बनकर पदयात्राएँ करते ही जा रहे थे । इन पद-यात्राओं का अन्तिम पड़ाव कौन-सा है, ज्ञात नहीं। उनकी कृतियों को ध्यानपूर्वक देखने से जानकारी प्राप्त होती है कि जब तक उनमें शारीरिक बल था, तब तक उन्होंने दीर्घ पद-यात्राएँ की । वे जिधर जाते, उधर ही उनका गन्तव्य स्थल रहता था - १. समयसुन्दर - रास-पंचक, चम्पक- श्रेष्ठि- चौपाई, पृष्ठ ९७-९८ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५०१-५१५ ३. नवतत्त्ववृत्ति, प्रशस्ति ( १ ) ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ३०४-३०७ ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५१५-५२५ ६. अप्रकाशित ७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि ८. दशवैकालिक - सूत्रवृत्ति, पृष्ठ ११८ ९. थावच्च सुत - ऋषि - चौपाई (२-१०-२० ) १०. रघुवंश - वृत्ति, प्रशस्ति (७-९) ११. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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