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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व गीतम्' में उल्लेख किया है कि लवेरा शहर में इन्हें 'उपाध्याय' पद प्रदान किया गया । यद्यपि उस गीत में उन्होंने सं० समय की सूचना नहीं दी है, किन्तु 'अनुयोगद्वार' (१६७१) की पुष्पिका में 'वाचक' तथा ऋषिमण्डलवृत्ति (१६७२ ) की पुष्पिका ( प्रशस्ति) में उपाध्याय पद का उल्लेख होने से इसी अवधि के मध्य वे लवेरा शहर गये होंगे और उन्हें 'उपाध्याय' पद से अलंकृत किया गया होगा ।
उत्कट साहित्य - साधना हेतु कविवर्य विहार करते हुए वि० सं० १६७२ में मेड़ता आए । वहाँ पर उन्होंने चार वर्ष तक निरन्तर साहित्य - साधना की । 'समाचारी'शतक', 'विशेष - शतक', 'प्रियमेलक - चौपाई', 'पुण्यसार - चौपाई', 'गाथासहस्री', ‘नलदवदन्ती-रास‘१, ‘विचार - शतक' आदि कवि की प्रमुख कृतियाँ इसी चार वर्षों की अवधि में रची गईं। ' श्री राणकपुर आदिजिन स्तवन २ के आधार पर विदित होता है कि कवि सं० १६७२ में वर्षावास समाप्त करके १०४४ स्तम्भों के अद्वितीय जिनमंदिर का दर्शन करने के लिए राणकपुर भी गये, परन्तु वापस मेड़ता आ गये थे ।
जालोर में प्रतिष्ठापित श्री जिनकुशलसूरि की चरण पादुकाओं में अंकित अभिलेख ज्ञात होता है कि कवि ने ही वि० सं० १६७५ में उन चरणपादुकाओं की प्रतिष्ठा करवाई
थी ।
राजस्थान के रेगिस्तानी प्रदेशों में पदयात्रा करते हुए वे वि० सं० १६७७ में अपनी जन्मभूमि सांचौर पहुँचे । यहीं उन्होंने चातुर्मास किया और 'सीताराम चौपाई ३ जैसी विशिष्ट भाषा - कृति का प्रणयन किया । 'सांचोर - तीर्थ महावीर जिनस्तवनम् ४ से बोध होता है कि कवि चातुर्मास के पश्चात् भी वहीं रहे। इस काल में उन्होंने 'निरयावलीसूत्र' का बीजक लिखा, जो यति नेमिचन्द्र, बाड़मेर के संग्रह में है । वि० सं० १६७८ में कवि ने आबू तीर्थ का दर्शन किया । ' श्री आबू आदीश्वर भास ५ से इस तथ्य की जानकारी प्राप्त होती है । वि० सं० १६७९, भाद्रपद कृष्ण एकादशी को कवि का पालनपुर में लिखा 'पट्टावली - पत्र' अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है। 'पट्टावली - पत्र' में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार उन्होंने यह चातुर्मास पालनपुर में किया था।
वल्कलचीरी - चौपाई, मौनएकादशी - स्तवन, गणधरवसही आदि जिन स्तवन'
१. नलदवदंती - रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३२
२. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ८२-८३ ३. सादूल रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर से प्रकाशित ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ २०५ - २०६ ५. वही, पृष्ठ ७८-८०
६. वल्कलचीरी - चौपाई, (१०-५ )
७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ २४०-२४१ ८. वही, पृष्ठ ८६-८९
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