SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दर का विचार-पक्ष ४५१ विश्व विराट और व्यापक है। मनुष्य उसका एक घटक है। विश्व में मनुष्य के आविर्भाव के साथ ही विचार या चिन्तन का भी आविर्भाव हुआ। 'उत्तराध्ययन सूत्रचूर्णि' के अनुसार चिन्तन और मनन करना मनुष्य का प्रधान लक्षण है। समयसुन्दर एक महान् विचारक और चिन्तक थे। उनके विचार और चिन्तन अत्यन्त प्रौढ़ थे। उनके विचार या चिन्तन का मूलाधार है, जैन दर्शन'। चूंकि वे जन्म से जैन थे और इसी धर्म में दीक्षित हुए, अत: उनके विचार भी जैन दर्शन से प्रभावित हों - यह स्वाभाविक है। किन्तु जब कोई विचारशील व्यक्ति प्रौढ़ हो जाता है, तो उसके विचार या चिन्तन भी प्रौढ़ होने लगते हैं और वह अपनी मान्यताओं में कुछ संशोधन एवं परिष्कार की अनुभूति करने लगता है। समयसुन्दर पर भी अन्य विचार-धाराओं का आंशिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने उन कतिपय विचार-धाराओं को ग्रहण भी किया। इस तरह अन्य विचार-धाराओं का समागम हो जाने से उनकी विचार-गंगा विस्तीर्ण हो गयी। उनके विचारों में नैतिकता, धार्मिकता एवं दार्शनिकता का त्रिवेणी-संगम है। हम उनकी विचार-धाराओं को संक्षेप में नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं - १.ईश्वरवाद बनाम अनीश्वरवाद ईश्वरवादी वह है जो सृष्टि का कर्ता-धर्ता या नियामक एक सर्वशक्तिमान् ईश्वर या परमात्मा को मानता है। उसके अनुसार भूमण्डल पर जब-जब अधर्म बढ़ता है, धर्म का ह्रास होता है, तब-तब भगवान् अवतार लेते हैं और दुष्टों का दमन करके सृष्टि की रक्षा करते हैं, उसमें सदाचार का बीज-वपन करते हैं। इसके विपरीत अनीश्वरवादी वह है जो व्यक्ति के स्वतन्त्र विकास में विश्वास करता है। उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति या जीव अपना सम्पूर्ण विकास कर सकता है। वह स्वयं ही अपना नियामक या संचालक है। वह स्वयं ही अपना मित्र है, शत्रु है। __महोपाध्याय समयसुन्दर ने अपने सैद्धान्तिक ग्रन्थों में न तो ईश्वरवादिता का समर्थन किया है और न ही निरीश्वरवादिता का। उनके एतद् सम्बन्धी विचार केवल लघु गीतों में ही व्यक्त हैं। उनका भक्तिपरक गीति-साहित्य जहाँ ईश्वरवादिता का समर्थक है, वहाँ उपदेशपरक गीति-साहित्य न केवल निरीश्वरवादिता का समर्थक है, अपितु ईश्वरवादिता १. उत्तराध्ययनचूर्णि (३) २. द्रष्टव्य - समणसुत्तं, भूमिका, पृष्ठ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy