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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.७० सूक्तिकण (क) मांस भोजन ते अहित कहीजइ, ताव मांहे घी पान रे।
तप संयम आतम हित कहीयइं, मांदानइ मुंग धान रे॥ (ख) भूखो भोजन खीर, बिण जीम्यां छोडइ नहीं, हम जाणइ सही रे।
तिरस्यो न छोडइ नीर, सुपण्डित सुभाषित रसियो किम तजइ रे॥
दरिद्र लाधो निधान, किम छोडइ, जाणइ हम वलि नहिं संपजइ रे॥२ १.७१ स्वाद-मुक्त
जीभ नइ स्वाद माऱ्या जिके, ते मारस्यइ तुज्झ।
भव माहे भमता थकां,थास्यै जिहां तिहां जुज्झ॥३ १.७२ स्वार्थ
(क) कुटुम्ब सहु को कारिमुं, पुत्र कलत्र परिवारो जी।
स्वारथ विण विहडइ सहु, कुण केहनउ आधारो जी॥४ (ख) स्वारथ की सब हइ रे सगाई, कुण माता कुण बहिन री भाई।
स्वारथ भोजन भगति सजाई, स्वारथ बिण कोऊ पाणी न पाई। स्वारथ मां बाप सेठ बड़ाई, स्वारथ बिण नित होत लड़ाई। स्वारथ नारी दासी कहाई, स्वारथ बिण लाठी ते धाई।
स्वारथ चेला गुरु गुरहाई, स्वारथ सब लपटाणा भाई। १.७३ शुद्धि
साठी चोखा सूपडइ, छडतां ऊजला थायइ रे।
रूपइया खरा आगिमइ, घाल्यां कसमल जायइ रे॥६ १.७४ मिथ्याभाषी
कामी, लिंगी, वाणियो, कपटी अनइ कुनारि।
सांच न बोलइ पाँच ए, छट्ठउ वली जूआरि॥ गत पृष्ठों में हमने कविवर समयसुन्दर की प्रमुख सूक्तियों, सुभाषित वचनों को प्रस्तुत किया है। उनकी कोई भी रचना ऐसी नहीं है, जिसमें सूक्त-सुभाषितयों की १. सीताराम-चौपाई (३.१.१३) २. वही (८.१.१-३) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, आलोयणा-छत्तीसी (१२) ४. वही, श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम् (१०) ५. वही, स्वार्थ गीतम् (१-५) ६. सीताराम-चौपाई (१.२.१८) ७. वही (५. दूहा ९.७)
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