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________________ ४३८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व .. १.५५ मृत्यु भय मरणादप्याधिकं भयं किमपि नास्ति । १.५६ यतिधर्म यतिधर्म एव सर्व धर्मोत्तमः।२ १.५७ राजलक्ष्मी इयं राजलक्ष्मी: चंचला दृश्यते, यदि न त्यज्यते। तदा आरम्भपापपङ्कमग्नत्वेन दुर्गतौ गम्यते ॥३ १.५८ लोभ रामा रामा धनं धनं, भमतउ रहइ तूं राति दिनं । पुण्य बिना कहि क्युं धन पाइयइ, पूछि न मानइ तउ पंच जनं ॥ घर धंधइ सब धरम गमायउ, वीसरि गयउ देव गुरु भजनं । पोटि उपाड़ि गये कुण परभवि, म करि म करि जीव लोभ घनं ॥ १.५९ विनय समृद्धः पुमान् विनयं कर्वन मृ-(मि)ष्टो लगति।' १.६० विनाशकाल विनाशकाले विपरीत बुद्धि । १.६१ वीर-पुरुष सुभट तिके ज सराहियइ, जे रण पहिलो भेलि। सेना भांजइ शत्रु नी, अणिए अणिए मेलि॥ अरि करि दंत उपरि चढ़ी, हणइ उपरि सिरदार। धड़ विण घा मारइ धसी, ते साचा झूझार॥ १.६२ वैराग्य (क) क्षण क्षण करम नो क्षय करी, संवेग शुद्ध धरंतो जी। भवसायर बीहामणउ, ते नर तुरत तरंतो जी ॥ १. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०४ २. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०० ३. वही, पृष्ठ २०० ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, लोभ निवारण गीतम् (१-२) ५. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०० ६. चार प्रत्येकबुद्ध चौपाई (२.४.४) ७. सीताराम-चौपाई (६. दूहा ३१.२४-२५) ८. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम् (२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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