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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
३९५ मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार पूरे छन्द में कुल ५७ मात्राएँ होती हैं । यथा -
१. २. ३. ४. ५. ६. ७. गु. ।।।। ।। ऽ ऽ ऽऽ ऽ।। ।। 555 5 पणमिय पासजिणंद, साणंदं सयललोयणाणंदं। = ३० मात्रा
१. २. ३. ४. ५. ६. ७. गु. ऽ ।। ।। sऽ ।ऽ । ऽ ।। । ऽऽऽ श्रीजिणचंदमुणिंदं थुणामि भो भविय भावेण ॥ = २७ मात्रा विशेष = १. आर्या छन्द के छठे गण में केवल एक लघुवर्ण ही होता है।
२. पादान्त-अक्षर 'गुरु' मान्य है। ४.२२ गाथा
यह प्राकृत-भाषा का छन्द है। इसमें ताल, स्वर आदि के नियमों का बन्धन नहीं होता है। जैसे
दीसइ विविहं चरियं, जाणिज्जइ सयण दुजण विसेसो।
अप्पाणं च कलिज्जइ, हिं डिजइ तेण पुहवीए॥२ ४.२३ चङ्ग
इस मात्रिक-वृत्त के प्रत्येक चरण में १३ मात्राएँ होती हैं। वस्तुतः गलात्मक (51) अन्तवाली 'लीला' के अन्तिम लघु को गुरु कर देने से यह छन्द बनता है। उदाहरण इस प्रकार है
। ।।।5। 5 5 = १३ मात्रा
वीस विहरमान गाया, परमानन्द सुख पाया।
जीभ पवित्र पिण कीधी, मिश्री दूधस्यु पीधी ॥३ ४.२४ चौपाई
इसमें १५ मात्राएँ होती हैं। इसके अन्त में 5। अनिवार्य है। जैसे - ।।5 55 ।। ऽ ऽ। = १५ मात्रा
नयणां दीठां नित आणंद, सेवंतां सुरतरु ना कंद।
लहियइ लक्ष्मी लील विलास, सहसफणा चिंतामणि पास ॥४ ४.२५ पद्धति
इसमें १६ मात्राएँ होती हैं। इसके अन्त में जगण रखने का विधान है। उदाहरणतः १. वही, यु० जिनचन्द्रसूरि गीतम् (१) २. प्रियमेलकतीर्थप्रबन्धे सिंहलसुत-चौपाई (३.१) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, विहरमान-वीसी-स्तवनाः, कलश (१) ४. वही, श्रीलौद्रवपुर सहसफणा पार्श्वनाथ स्तवनम् (६)
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