SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ३९३ हैं, उसको वसन्ततिलका कहते हैं। काश्यप मुनि के मतानुसार इसका नाम 'सिंहोन्नता' और सैवत मुनि के मतानुसार 'उद्धर्षिणी' तथा पिंगल के मतानुसार 'मधुमाधवी' भी है। वसन्ततिलका का उदाहरण इस प्रकार है - त. भ. ज. ज. गु.२ 551 ।। ।। ।। 55 वन्दामहे वरमतं कृत-सात-जातं, तं मानकान्तमनघं विपरौध कोपम्। पद्यामलं परम-मंग-कराऽमदा कं, ___कष्टावली कलिवनद्विप-हीन-पापम् ॥ ४.१६ मालिनी यह वार्णिक वृत्त है। इसे कोई-कोई मात्रिक भी मानते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पाद में दो नगण, एक मगण, पुनः दो यगण होते हैं। यथा --- न. न. म. य. य. ।।। ।।। ऽऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ प्रथमजिनवरा संकल्पभावप्रमाणं, प्रकटभुवनकीर्ते कल्पभावप्रमाण । प्रदलितरिपुवन्दः सर्वदा तातमेशं. - प्रथम मदतिमिश्रे सर्वदाता तमेश ॥२ ४.१७ मणिगुणनिकर यह मणि-गुण नामक वार्णिक वृत्त का एक भेद है। मणि-गुण के प्रत्येक चरण में चार नगण और एक सगण होता है। मणिगुणनिकर उसके आठवें वर्ण पर विराम करने से बनता है। समयसुन्दर ने इसका नाम 'गुणमणिनिकर' दिया है। उदाहरणार्थ - न. न. न. न. स. ।।। ।।। ।।। ।।। ।। अशरण-शरण-मरण-भय-हरण, सुरपति-नरपति-शिवसुख-करण। जय जिनवर भव-जलनिधि-तरण, गुणमणिनिकर-चरणमयधरण ॥३ विशेष – पादान्त-वर्ण गुरु है। ४.१८ हरिणी जिस वर्ण-वृत्त में नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, एक लघु तथा एक गुरु १. वही, श्री पार्श्वनाथहारबन्धचलच्छखलागर्भितस्तोत्रम् (१) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नानाविधश्लेषमयं श्री आदिनाथस्तोत्रम् (४) ३. वही, श्रीवीतरागस्तव-छन्दजातिमयम् (१८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy