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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व आचार्य मम्मट ने काव्य-प्रकाश में लिखा है - नियतिकृतनियमरहितां, हलादैकमयीमनन्यपरतन्त्राम्। नवरसरुचिरां निर्मितमादधती भारती कवेर्जयति ॥१ अर्थात् -- नियति-विरचित नियमों से जो आबद्ध नहीं है, आह्लाद ही जिसका सर्वस्व है, जो किसी अन्य कारणादि के परतन्त्र नहीं है तथा नव रसों से युक्त होने के कारण जिसकी रचना परम मनोहारिणी है, वैसी कवियों की वाणी सदैव विजय प्राप्त करती है। उपर्युक्त पद्य में आचार्य मम्मट ने कविता की जिन विशेषताओं का उल्लेख किया है, वे सभी महोपाध्याय समयसुन्दर की कविताओं या रचनाओं में प्राप्त होती हैं। विवेच्य रचनाओं में इन तत्त्वों की उपस्थिति से विलक्षण रमणीयता आ गई है, जो सहृदय पाठक को चमत्कृत किये बिना नहीं रहती। कवि की इस साहित्यिक सुषमा का आधार उसके काव्य में विद्यमान अलङ्कार, रस, छन्द, लोकोक्ति, मुहावरे आदि हैं। वास्तव में इनकी विद्यमानता से कवि की रचनाएँ सप्राण बन गयी हैं। लाङ्गफैलो के अनुसार हर महान् कविता नियम से बन्धी होती है, किन्तु अपने संकेतों में निस्सीम और अनन्त होती हैं। समयसुन्दर की कविताएँ भी नियमों से आबद्ध हैं, परन्तु अपने संकेतों में वे असीम का स्पर्श करती हैं। समयसुन्दर ने अपने कृतित्व को सँवारने का प्रयत्न नहीं किया है, अपितु वह स्वभावतः सँवर गया है, साहित्यिक तत्त्वों से सज्जित हो गया है। समालोच्य कवि एक अध्यात्म साधक थे और आध्यात्मिक कवि के काव्य में वे स्वानुभूतियाँ सहज ही अभिव्यक्त होती हैं, जो काव्य के साहित्यिक सन्दर्भ का आधार होती हैं। कविवर समयसुन्दर की रचनाएँ इसी का अनुकरण करती हैं। प्रस्तुत अध्याय में हम कवि की रचनाओं का साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकन करेंगे। महाकवि समयसुन्दर की रचनाओं में जो साहित्यिक तत्त्व हैं, उन्हें हम अग्रिम पृष्ठों में प्रस्तुत कर रहे हैं - १. काव्यप्रकाश (१) २. उद्धृत - विश्व सूक्ति-कोश, भाग २, पृष्ठ ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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