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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व की वीरांगनाओं की गर्वोक्तियों का वर्णन भी बहुत सरस बन पड़ा है। द्रष्टव्य है, लक्ष्मण और खरदूषण की सेना के साथ हुए युद्ध का वर्णन -- लक्ष्मण ने उसकी विशाल सेना को कितनी शूरवीरता से परास्त किया -
सुभटे हथियार बाहिया रे, मोगर नइ तरवारि रे। लखमण नइ लगा नहि रे लाल, जिम गिरि जगधर धार रे॥ तीर सडासड मुकिया रे, लखमण वज्राकार रे। सुभट कटक उपरि पडइ रे, करइ यम भड ज्युं संहार रे॥ मस्तक छे दई के हनो रे, के हनी दाढ़ी मूंछ रे । वलि छेदई रथनी धजा रे, केहना हय नी पूंछ रे॥ चपल तुरंगम त्रासवइं रे, नीचा पडइ असवार रे। रथ भांजी कुटका करई रे, कायर करइ पोकार रे॥ ऊंची इंडि उल्लालतां रे, हाथी पाडइं चीस रे। पायक-दल पाछा पडई रे, आधा नावइं अधीसरे ॥ लखमण परदल भांजियो रे, एकलइ अडिग अवीह रे।
हत प्रहत करि नांखीयो रे, हस्ति घटा जिमि सीह रे॥
राम-पक्ष और रावण-पक्ष का परस्पर युद्ध-वर्णन तो बहुत विस्तृत है। इस वर्णन को कवि ने बड़ी ही उत्साहपूर्ण शैली में किया है। इस युद्ध-वर्णन से कुछेक पद्य उद्धत हैं -
हो संग्राम राम नइ रावण मंडाणा, जलनिधि जल ऊछलिया। इन्द्र तणा आसण खलभणिया, शेषनाग सलसलिया। प्रबल बेउं दल दीसई पूरा, अणिए अणिए मिलिया। सूरवीर ऊँचा उछलिया, हाक बुंब हूं कलिया । समुद्रवेलि सारिषउ राक्षस बल, दीठउ साम्हउ आयो। राम तणउ पणि वानर नउदल, त्रूटिनइ साम्हो धायो॥ सरणाइं वाजइ सिंधुडइ, मदन भेरि पणि वाजइं। ढोल दमांमां एकल धाई, नादई अंबर गाजइं ॥ सिंह नाद करइं रणसूरा, हाक बूंब हुंकारा। कांने सबद पड्यो सुणियइ नहीं, कीधा रज अंधारा ॥ युद्ध माहोमांहि सबलो लागो, तीर सडासडि लागी। जोर करीनई घा मारंतां, सुभटे तरुयारि भागी॥
१. सीताराम-चौपाई (६.३-५)
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