________________
३२६
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व भी रचा जाता था, जिसमें अनेक राजा निमन्त्रित होते थे। कन्या अपनी सहेलियों सहित वरमाला हाथ में लिए हुए स्वयंवर-मंडप में प्रवेश करती थी। राजा लोग उसे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते थे। कोई एक सहेली उस कन्या को प्रत्येक राजा का परिचय देती थी। अन्त में कन्या योग्य वर के गले में वरमाला डाल देती या जो कन्या की प्रतिज्ञा को पूर्ण करता था, वह उसे प्राप्त कर लेता था। सीता के विवाह का प्रसंग इसी प्रकार का है। उपस्थित राजा-महाराजाओं में से कोई भी धनुष चढ़ाने में सफल न हुए। रामचंद्र ही सफल हुए, उन्होंने सीता प्राप्त की
विद्याधर नर सहु देखतां, रामइ चाढ्यंउ चाप। टंकारव कीधउ ताणी नइ, प्रगट्यउ तेज प्रताप॥
उपसांत थया खिण मइ उपद्रव वरत्या जय जयकार। देव दुंदुभि आकासइ वाजी पुष्पवृष्टि परकार ॥ सीता पणि हरषित थइ पहुती राम समीप सलज्ज।
x
x
विद्याधर रंज्या गुण देखी सबल सगाई कीधी। रूपवंत अट्ठारह कन्या रामचन्द नइ दीधी॥ विद्याधर किन्नर सुर सहु को पहुता निज निज ठाम।
पाणीग्रहण करायउ राम नइ सीधा वंछित काम॥ यद्यपि कवि ने उक्त प्रसंग को अत्यन्त विस्तारपूर्वक वर्णित किया है, लेकिन यहाँ उसे विस्तार से देना उचित नहीं है।
'नल-दवदंती-रास' में दमयन्ती के विवाह का वर्णन भी विस्तृत एवं सुन्दरतम है। कवि ने दमयन्ती का विवाह-वर्णन कुल ४३ पद्यों में किया है। वेत्रिणी, अंग, मगध, कलिंग, कंबोल, वच्छ, कासमीर, कासी, मलयाचल, पंचाल, लाट आदि देशों के राजाओं का क्रमश: परिचय कराती है, किन्तु दमयंती को कोई पसन्द नहीं आया। आगे नल राजा को देखकर वह हर्षित हुई और उसने नल को वरमाला पहना दी -
दवदंती मन मानियऊ, नलराय सुं हरषेण।
वरमाला कण्ठइ ठवी, सुरगिरि तारां नी श्रेणि॥२ बाद में भीम राजा ने अत्यन्त उत्साहपूर्वक दमयन्ती का विवाह किया। देखिये, विवाह वर्णन -
१. सीताराम-चौपाई (१.७.१७-१९) २. नलदवदन्ती-रास (१.४.२४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org