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________________ समयसुन्दर का वर्णन-कौशल ३२३ कुंयली बांह कलाविका रे, कमल सुकोमल हाथ रे मृगावती, रिद्धि अनइ सिद्धि देवता रे लाल, नित्य बसई बे साथ रे मृगावती। हृदय कमल अति रूयडुं रे, धर्मबुद्धि आवास रे मृगावती, कटि लङ्क जीतउ केसरी रे लाल, सेवइ नित वनवास रे मृगावती। चरण कमल ना काछबा रे, ते तउ अति सुकमाल रे मृगावती, नख राता अति दीपता रे लाल, दरपण जिम सुविसाल रे मृगावती॥ सीता का नख-शिख वर्णन भी दर्शनीय है - सीता अति सोह इ, सीता तउ रूपइ रूडी। जाणे अम्बा डालिं सूडी हो। बेणी सोहइ लांबी, अति स्याम भमरकडिआंबी हो। मुख ससि चांद्रणउ कीधउ, अन्धारइ पासउ लीधउ हो॥ राखड़ी सोहइ माथइ, जाणे सेष चूडामणि साथइ हो। ससिदल भाल विराजइ, विचि विंदली शोभा काजइ हो। नयन कमल अणियाला, विचि कीकी भमरा काला हो। सूयटा नी चाँच सरेखी, नासिका अति तीखी निरखी हो। नकवेसर तिहां लहकइ, गिरुया नी संगति गहकइ हो। कांने कुंडल नी जोड़ी, जेह नउ मूल लाख नइ कोडी हो॥ अधर प्रवाली राती, दंत दाडिम कलिय कहाती हो। मुख पुनिम नउ चंदउ, तसु वचन अमीरस विंदउ हो॥ कंठ कंदलवली त्रिवली, दक्षणाव्रत संख ज्युं सबली हो। अति कोमल बे बांहां, रत्तोपल सम कर तांहा हो॥ घण थण कलस विसाला, ऊपरि हार कुसुम नी माला हो। कटि लंक केसरी सरिखउ, भावइ कोइ पंडित परिखउ हो। कटि तट मेखला पहिरी, जोवन भरि जायइ लहरी हो। रोम रहित बे जंघा हो, जाणे करि केलि ना थंभा हो॥ उन्नत पग नख राता, जाणे कनक कूरम बे माता हो। सीता तउ रूपइ सोहइ, निरखंता सुर नर मोहइ हो॥२ हम देखते हैं कि उपर्युक्त वर्णन में कवि ने सीता के नख-शिख-सौन्दर्य का कवित्वमय ढंग से चित्रण किया है। वस्तुत: नख-शिख मध्ययुगीन काव्य का प्रिय विषय रहा है। समयसुन्दर के काव्यों में भी नख-शिख वर्णन उपलब्ध होता है। १. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.२.१-१२) १. सीताराम चौपाई (१.५.१-९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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